SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 134
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३२ ) आज्ञा का पालन उत्तर दिशा में तुर्कस्थान, पूर्व में गंगा नदी, दक्षिण में विन्ध्याचल और पश्चिम में समुद्र पर्यन्त के देशों में होना लिखा है। यज्ञों में पशु बलि देना बन्द किया । तभी से अन्न का हवन होना शुरू हुआ । लाखों रुपये व्यय करके जैन शास्त्रों का आपने उद्धार कराया और अनेक पुस्तक भण्डार स्थापन किए । हजारों जैन मन्दिरों का जीर्णोद्धार किया तथा नए वनवाए । आपने जैन धर्म के प्रभाव को बहुत बढ़ाया । चौहान वंशीय जैन योद्धा:--राव लक्ष्मण (लखमसी) जिन्होंने नाडोल में स्वतन्त्र राज्य कायम किया था। इस. कुल के अन्तिम राजा अल्हणदेव थे। लाखा ने नाडोल का किला बनवाया था। उसके चोवीस पुत्र थे । उनमें से एक का नाम 'दादराव' था, वही भण्डारी कुल का जन्मदाता था। विक्रम संवत् ११४६ अथवा ई० सन् १९२ में यशोभद्रसूर्यने दादराव को जैन धर्म ग्रहण कराया था और उसके कुल को श्रीसवाल जाति में मिलाया था। गंगवंशीय जैन राजा:-इक्ष्वाकुया सूर्यवंश में 'धनंजय' थे, उनकी स्त्री गन्धारदेवी थी। इनके पुत्र राजा हरिश्चन्द्र अयोध्या में हुए, इनकी रानी रोहणीदेवी थी तथा इनके पुत्र का नाम “भरत था। भरत की पत्नी विजयमहादेवी ने गर्भावस्था में गंगा नंदी में स्नान किया था और उसी समय उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई । अतः उस पुत्र का नाम गंगादत्त रखा गया और उसके वंशज गंगवंशीय कहलाये । इसी वंश में राजा प्रियवन्धुवर्मा हुए। फिर राजा फम्प हुए । इनके पुत्र राजा पद्मनाथ थे। इन के राम और लक्ष्मण दो पुत्र हुए। पद्मनाथ अपने दोनों पुत्रों व एक छोटी पत्री के साथ दक्षिण को प्रस्थान कर गये । दक्षिण में पंचूर स्थान (जिला कुड़ाया अब भी इसको गंकपरुर कहते हैं) , पर जब ये पहुंचे तब वहां कणुरगण के प्राचार्य सिंहनन्दि
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy