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________________ . ग्रन्थ और ग्रन्थकार-परिचय किया है, वे पूर्ण ज्ञानी बनकर सदाके लिए अजर और अमर बन गये हैं। . . इस ग्रन्थके रचयिता प्रा० शुभचन्द्र हैं। इनका समय श्रोप्रेमोजीने विभिन्न आधारोंसे विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दी सिद्ध किया है। कलिकालसर्वज्ञ कहे जानेवाले श्वे० विद्वान् हेमचन्द्राचार्यने अपने योगशास्त्रकी रचना विक्रम सं० १२०७ और १२२६ के बीच में की है । और यतः ज्ञानार्णवके श्लोक उसमें पाये जाते हैं, अतः सिद्ध है कि शुभचन्द्र इनसे पूर्व हुए हैं। तथा ज्ञानार्णवमें अमृतचन्द्राचार्यकी पुरुषार्थसिद्ध्युपायके श्लोकको 'अयं च' करके उद्धृत किया है, इसलिए वे अमृतचन्द्र से पीछे हुए हैं। इस प्रकार ज्ञानार्णवके कर्ता श्रा० शुभचन्द्रका समय विक्रम सं० १०५५ और १२०७ के मध्यमें सिद्ध होता है। ... ज्ञानार्णवके विभिन्न अध्यायोंके ३२ श्लोक जैनधर्मामृतके पहले, तीसरे और चौथे अध्यायमें संकलित किये गये हैं। इतना विशेष रूपसे । ज्ञातव्य है कि जैनधर्मामृतके पहले अध्यायमें मंगलाचरण रूप पहला ..श्लोक भी ज्ञानार्णवका ही है। . - यह ग्रन्थ पं० पन्नालालजी बाकलीवाल के हिन्दी अनुवादके साथ .. रामचन्द्र ग्रन्थमाला बम्बईसे सन् १६०७में प्रकाशित हुआ है। ... ११. वीरनन्दि और आचारसार . आचारसार-मुनियोंका आचार-विहार आदि कैसा होना चाहिए, उनके मूलगुण और उत्तरगुण कौन-कौनसे हैं, इत्यादि बातोंका विवेचन इस ग्रन्थमें किया गया है। श्राचारसारकी रचना और वर्णन-शैलीको . १. देखो, प्रेमीजीका जैनसाहित्य और इतिहास पृ० ३३२ आदि (द्वि० संस्करण)
SR No.010233
Book TitleJain Dharmamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1965
Total Pages177
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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