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________________ ग्रन्थ और ग्रन्थकार - परिचय व्याख्याप्रज्ञप्ति ये चार ग्रन्थ भी अमितगतिकृत बतलाये जाते हैं, पर ये सब अभी तक अप्राप्य हैं । 98 आ० श्रमितगतिने प्रायः अपने ग्रन्थों के अन्त में ग्रन्थ-रचनाका समय दिया है। सुभाषित-रत्नसन्दोहकी रचना वि० सं० १०५० में, धर्मपरीक्षा की १०७० में और सं० पंचसंग्रहकी १०७३ में की है । इससे सिद्ध है कि इनका समय विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दी है और ये अपने समयके महान् विद्वानों से हैं । मूल सं० पंचसंग्रह माणिकचन्द्र-ग्रन्थमालासे सन् १९२७ में और अमितगति श्रावकाचार अनन्तकीर्त्ति ग्रन्थमाला बम्बई से हिन्दी अनुवाद के साथ वि० सं० १९७६ में प्रकाशित हुआ है ६. वादीभसिंह और क्षत्रचूड़ामणि भ० महावीर के समय में होनेवाले महाराज सत्यन्धर और उनके पुत्र जीवन्धरको लक्ष्य करके इस चरित्र - प्रधान ग्रन्थकी रचना की गई है । यह सारा ग्रन्थ सुन्दर सूक्तियोंसे भरा हुआ है क्षत्र चूड़ामणिमें ११ लम्ब हैं और उन सबकी श्लोक संख्या ७४७ है । उसमें से केवल एक श्लोक जैनधर्मामृत के चौदहवें अध्यायमें संग्रह किया गया है । । क्षेत्र - चूडामणिके रचयिता श्रा० वादीभसिंहने इस नीति परक सरल रचना के अतिरिक्त उन्हीं जीवन्धरको लक्ष्य करके ठीक तदनुरूप ११ लम्बोंवाले एक प्रौढ़ गद्य ग्रन्थ गद्यचिन्तामणिकी भी रचना की है जो कि कादम्बरीके ही समान सुन्दर और महत्त्वपूर्ण है। श्री नाथूरामजी प्रेमी के मतानुसार आ० वादीभसिंह विक्रमकी ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुए हैं। १ - देखो - श्री प्रेमीजी द्वारा लिखित जैन साहित्य और इतिहास, पृ० ३२५, (द्वितीय संस्करण )
SR No.010233
Book TitleJain Dharmamruta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1965
Total Pages177
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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