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________________ काम, क्रोध, मान, माया, लोभ आदि दुर्वासनाओं तथा मोहनीय अादि कर्मों को जीत चुके थे। इस कारण उनका नाम उस समय 'जिन' यानी कर्मों का जीतने वाला (जयतीति जिनः) प्रसिद्ध हुश्रा । इस कारण उनके बनलाये हुए मार्ग का नाम जैन धर्म पड़ा। भगवान ऋषभदेव बहुत दिन तक जीवन मुक्त (अर्हन्त दशा) में धर्म का उपदेश सब जगह देते रहे। पीछे पूर्ण मुक्त हो गये । इनके द्वितीय पुत्र बाहुबली ने जो कि बड़े पहलवान बलवान थे। एक वर्ष तक खड़े रह कर घोर तपस्या करके भगवान ऋषभ देव से भी पहले मुक्ति प्राप्त की। इनकी मूर्ति गोम्मट स्वामी तथा बाहुबली के नाम से निर्माण होती रही है। इस समय श्रवण बेलगोला में चन्द्रगिरि पर्वत पर लगभग ५८ फुट ऊंची बहुत मनोहर मूर्ति विद्यमान है। भगवान ऋषभ देव के धर्म मार्ग का ( जैन धर्म का) प्रचार उनके अनुयायी साधु, राजा, महाराजा आदि करते रहे । फिर उनके बहुत समय पीछे क्रम से श्री अजितनाथ, संभवनाथ, अभिनन्दन, सुमतिनाथ, पद्मप्रभ, सुपार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभ, पुष्पदन्त, शोतलनाथ, श्रीयांसनाथ, वासुपूज्य, विमलनाथ, अनन्तनाथ धर्मनाथ, शान्तिनाथ, कुन्थनाथ, अरनाथ, मल्लिनाथ, तीर्थङ्करों का अवतार हुआ जो कि भगवान् ऋषभदेव के समान अपने अपने समय में जैन धर्म का प्रचार करते रहे।
SR No.010232
Book TitleJain Dharm Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherBharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani
Publication Year1934
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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