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________________ ( २ ) आज से अरबों वर्ष पहले इस भारतवर्ष में नाभिराय नाम के राजा थे। उनकी मरू देवी नाम की रानी थीं। उनके उदर से भगवान श्री ऋषभ देव का जन्म हुआ। ये ऋषभ देव बड़े अद्भुत पराक्रमी, प्रतापी और प्रभावशाली थे । इन्होंने अपने राज्य काल में लोगों को अनेक कलाएँ विद्याएँ सिखाई थीं इनके एक सौ पुत्र और दो पुत्रियाँ थीं । पुत्रियों को पढ़ाने के लिये लिपि विद्या का प्राविष्कार भगवान ऋषभ देव ने किया था । इनके बड़े पुत्र का नाम भरत था जो कि इनके साधु हो जाने पर सर्व प्रिय, महा-प्रतापशाली चक्रवर्ती सम्राट् राजा हुआ था । एक दिन भगवान ऋषभ देव अपने राज सिंहासन पर बैठे. हुए नीलांजना नामक अपसरा का नाच देख रहे थे, नाचते नाचते अचानक उसकी मृत्यु हो गई । इस बात को जानकर राजा ऋषभदेव के मन में राज्य, भोग, विलास से उदासीनता हो गई और इस कारण राज्य भार भरत को देकर आप सब संसारी चीजें यहां तक कि अपने शरीर के कपड़े भी छोड़कर साधु बन गये | साधु बनकर इन्होंने बहुत भारी तपस्या की । साथ ही जब तक इन्होंने जीवन मुक्ति यानी सर्वज्ञता प्राप्त नहीं की तब तक किसी को उपदेश भी नहीं दिया, मौन रहे । जिस समय भगवान ऋषभ देव सर्वज्ञ हो गये यानी समस्त दोषों से छूटकर त्रिकाल ज्ञाता हो गये तब इन्होने मनुष्य, पशु, पक्षी आदि सब जीवों को उपदेश दिया। चूंकि भगवान ऋषभदेव
SR No.010232
Book TitleJain Dharm Parichaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjit Kumar
PublisherBharatiya Digambar Jain Shastrartha Sangh Chhavani
Publication Year1934
Total Pages53
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size2 MB
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