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________________ जैन धर्म में तप बीजाक्षरों में भी देवताओं के, इष्ट देव के संकेत छिपे रहते हैं । जैसे'ॐ शब्द में ईश्वर का व पंचपरमेष्ठी का संकेत है। वैदिक मन्यों के अनुसार 'ॐ' ईश्वर का वाचक है । कुछ आचार्यों ने इसे ब्रह्मा-विष्णु-महेश का द्योतक बताया हैं । जैसे अकारो वासुदेवः स्याद् उफारस्तु महेश्वरः । मफारः प्रजापतिः स्यात् प्रिदेवो में प्रयुज्यते । इसी प्रकार जैन आचायों ने भी इसे पंच परमेष्ठी का वाचक माना है। जैसे-. अरिहंता असरीरा आयरिय उवज्झाय मुणिणो । पढमक्खर निष्फनो ॐकारो पंच परमिद्री।' . अरिहंतसिद्ध (अशरीरी)-अ आचार्य-आ उपाध्याय-उ - ओ मुनि-म म् = ओमतो इस प्रकार पांचों परमेष्ठी पदों का प्रथम अक्षर मिल कर 'ॐ' शब्द . बनता है । 'ॐ' के ऊपर चन्द्र विन्दु है, इसके भी दो अर्थ हैं-वैदिक आचार्यो की दृष्टि में प्रत्येक वीजाक्षर के ऊपर जो अनुस्वार या चन्द्रबिन्दु लगता है वह 'नाद' है, और वह अक्षर के शक्तितत्व को प्रकट करता है। शब्द फी. ध्वनि में भी वह ओज भरता है इसलिए प्रत्येक बीज मंग के ऊपर चन्द्रविन्दु लगाना अनिवार्य होता है। जैन आचार्यों की दृष्टि में मधं चन्द्र के माहार में सिद्ध शिला की कल्पना की गई है ! तंत्र शास्त्र के अनुसार अलग-अलग शक्तियों प बीज मंत्रों के अलग-अलग संकेत होते हैं जो उसके शक्ति तत्व के प्रतीक माने गये हैं। उदाहरणस्वरूप हो-नाया योग है। धों-नामी बीज है। - १ वह दम्प गंह, टीका पृष्ठ १८२
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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