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________________ ४६३ चार पदों की अपेक्षा ज्ञान, दर्शन आदि पदों की स्थापना से ध्यान में आलम्बन अधिक सुदृढ़ बनता है। इसकी स्पष्ट कल्पना के लिए मंलग्न चित्र देखिए ध्यान तप THIS णमो तवस्स महात णमो सिद्धाणं णमो अरिहंताणं ܩܢ सिद्धचक्र णमो णाणस्स आयरियाणं णमो दसणरस णमो इसी प्रकार अन्य मंत्राक्षरों पर किसी आकृति की कल्पना बनाकर उनका ध्यान भी किया जाता है । इसमें आगम के किसी पद पर भी ध्यान टिकाया जा सकता है । चत्तारि मंगलं, ऊं, हों आदि मंत्रों पर भी ! इनका स्मरण व जप करना स्वाध्याय में गिना जाता है, किन्तु उन पर चितन करना विचार प्रवाह को एक धारा में ही प्रवाहित किये रखना ध्यान है । अक्षर ध्यान सिद्ध चक्र की नोति अक्षर ध्यान में भी कल्पना के आधार पर अक्षरों की स्थापना की जाती है । उन अक्षरों पर नगद स्वरूप की कल्पना करके चितन किया जाता है। अक्षर का अर्थ है कभी नष्ट नहीं होने वाला अविनाशी ! अविनानी तत्व एक ही है-आमा ! बुद्ध स्वरूप स्थित
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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