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________________ जनगन तप ३ पनतप ४ वर्गतप ५. वर्ग-वर्ग तप ६ प्रकोप वेला, कगा (१) श्रेणी तप-श्रेणी का अर्थ है कम, अर्थात् पंक्ति ! उपवास, तेला, मीना आदि यम से किया जाने वाला पण तप, आता है। यह तप उपवास से लेकर छह मास तक का होता है । (२) प्रतर तपश्रेणी को श्रेणी से गुना करना अंतर है। प्रवर म से अर्थात् श्रेणी तप को गुणको दृष्टि से तप करते जाना उपवास, बेला, तेला, चोला है। चार पदों की श्रेणी है। उदाहरण स्वरूप - श्रेणीकोण पर पद लंबाई-चौड़ाई में बराबर होने चाहिए। जैसे पहली यह क्रम बनेगा. दूसरी श्रेणी में सबसे पहले ४ के बाद १ निगा जायेगा। इसको प्रकार है ܐܕ ":" Y इसकी एक आहार में वो हुए कि है जिनमें ~ ma ر पिके पद हो जाते है। לי ८ १-२-३-४ लिया जायेगा और लिने काम a १८३ B है 0' ע. विकेगा दिन पूर्व मे हैर्ष करने में आहार के होते है।
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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