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________________ जैन धर्म में त २ शास्त्र का पठन ३ मात्मस्वरूप का चिंतन और तीन कार्य न करो १ क्रोध स्वामी को कठोरता है । यि क्षीण हो के पुष्प का नाश मास तप कान पर एक वर्ष काट कर देता है । तप और २ अहंकार ३ विषय-प्रमाद सेवन उपदेश माला ग्रन्थ के रचयिता क्षमाश्रमण धर्मदासगणो ने कहा है फरसवयणे दिणतवं अहिरखवतो हणइ मासतवं । परिसतवं सवभाणो हणइ हणंतो य सामन्न ।१२४ --किसी को कठोर वचन कहने वाला एक दिन के तप का-एक उपवास के पुण्य का नाश कर डालता है। किसी को निंदा, भत्संना और मगं प नोट करने से एक मास के तप का पुण्य क्षीण हो जाता है। किसी न शाप देने और लट्टी आदि से प्रहार करने पर एक वर्ष का तप और हत्या करने पर जीवन भर तक किये गये तप के पुण्य को नष्ट कर देता है। . इसका अभिप्राय है उपवास में पाठोर वचन, शाप, गाली, निदा, हिता आदि का भी त्याग करना चाहिए । तभी उपवास का योग्य फल प्राप्त होता है। मनशन के मेर अनशन को पूर्वभूमिका स्पष्ट कर देने पर अब हमें अनशन तप के .. मास्त्रगत विविध प्रकारों पर विचार करना है । अनशन का सीधा अर्थ है - आहार त्याग ! आहार त्याग कम से कम एक दिन बानि (अहोरात्रि) का भी हो सकता है और उत्तुष्ट छहमहीने मा नौर जीवन पा का भी । उसरे विविध भेद इस प्रकार है असणे दुयिहे पणतं-- तं जहां-इत्तरिए य आयफहिए इत्तरिए अर्णगरिहे पण्णत ---- सं जहा-घनत्य भने, दम बाप हम्मासिए भने ।
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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