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________________ जैन धर्म में तप हैं गणधर उस प्रवचन के संपादक । तीर्थंकर सिर्फ अपने विचार व्यक्त . करते हैं, गणधर उन्हें शास्त्र या साहित्य का रूप प्रदान करते हैं।' किंतु यह महान कार्य हर कोई नहीं कर सकता। इस के लिए विशिष्ट ज्ञान, . प्रतिभा और कुशल संयोजन मेधा होनी चाहिए। यह कुछ खास व्यक्तियों - में ही होती है । अतः यह माना गया है कि जिनको गणधर लब्धि की प्राप्ति होती है वे ही गणधर पद प्राप्त करते हैं ! .. (१४) पूर्वधर लब्धि-'पूर्व' का शब्दार्थ होता है पहले । जैन परम्परा में पूर्व का अर्थ किया गया है-भगवान ने जो सबसे पहले गणधरों के सामने प्रवचन दिये-जिनमें सार रूप से समस्त वाङमय का ज्ञान छिपा थावे 'पूर्व' कहलाये । वारह अंग जो श्रुतज्ञान का अखूट खजाना है उसमें सबसे पहले जिस अंग (दृष्टिवाद) की रचना हुई उसे 'पूर्व' कहा गया-ऐसा प्रसिद्ध टीकाकार आचार्य अभयदेव एवं अन्य आचार्यों का मत है ।२ कुछ आचार्यों का कथन है कि जो श्रु तज्ञान भगवान महावीर से भी पहले अर्थात् भगवान पार्श्वनाथ की परम्परा से चला आ रहा था, उसे पूर्व' (पहले का) कहा गया है। ___ विश्व विद्या का ऐसा कोई भी विपय नहीं है, जिसका वर्णन 'पूर्व' में नहीं किया गया हो । यंत्र, मंत्र, तंत्र, शब्द शास्त्र, ज्योतिष, भूगोल, रसायन रिद्धि-सिद्धि आदि समस्त विषयों की चर्चा पूर्वो में है । पूर्व चौदह है । जिस मुनि को दश से लेकर चौदह पूर्व तक का ज्ञान होता है वह पूर्वधर कहलाता है । जिस शक्ति के प्रभाव से उक्त पूर्वो का ज्ञान प्राप्त होता हो,... १ अत्यंभासई अरहा सुत्तं गुथति गणहरा निउणा -आवश्यक नियुक्ति २ (क) प्रथमं पूर्व तस्य सर्व प्रवचनात् -समवायांग वृत्ति पत्र १०१ (ख) सर्वश्रु तात् पूर्व क्रियते इतिपूर्वाणि -स्थानांग वृत्ति १०१ (ग) तित्य करो तित्य पवत्तण काले गणघराणं सन्त्र सुत्ताधारत्तणतो पुव्वं पुव्वगत सुत्तत्यं भासति ताहा पुव्वं ति नणिता। __ -नंदीसूत्र (चूणि पृ० ११) .
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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