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________________ तप की लब्धियाँ खींच सकते हैं । ' वासुदेव में जितना बल होता है उससे दुगुना वल चक्रवर्ती में और जिनेश्वर देव चक्रवर्ती से भी अधिक बलशाली होते हैं । क्योंकि संपूर्ण वीर्यान्त राय कर्म का क्षय हो जाने के कारण तीर्थंकरों का बल अपरिमित होता है। (१९) क्षीरमधु-सपिराश्रवलब्धि-इस लब्धि के प्रभाव से वक्ता के वचन सुनने वालों को बड़े ही मधुर (दूध-मधु एवं घृत के समान) प्रिय एवं सुखकारी लगते हैं । आचार्य ने कहा है--यद् वचनमाकर्ण्यमानं मनः शरीर सुखोत्पादनाय प्रभवति ते क्षीराश्रवाः-जिनके वचन दूध जैसे, शहद जैसे और घी जैसे मन को, और शरीर को भी सुख एवं प्रीति पैदा करने वाले होते हैं वे क्षीर मधु सपिराश्रवल ब्धि के धारक होते हैं। साधारणतः दूध-मधुर भी होता है, प्रिय भी और शरीर एवं मन को प्रीति उत्पन्न करने वाला भी। इस पर भी यदि पुण्ड्रक्षु चरने वाली गाय का दूध मिले और वह भी वह दूध, जिससे चक्रवर्ती की खीर बनती हो तो उस दूध का कहना ही क्या ? उस दूध का वर्णन करते हुए आचार्यों ने बताया है:-पुण्ड-इक्ष (गन्ने) के खेतों में चरने वाली एक लाख गायों का दूध १ सोलसराय सहस्सा सव्व वलेणं तु संकलनिवद्ध। अंछंति वासुदेवं अगडतडम्मिठियं संतं ॥ १॥ घेत्त ण संकलं सो वामहत्थेण अंछमाणाणं। . भुजिज्ज बलि पिज्ज व महुमहणं ते न चाएंति ॥ २॥ जं केसवस्स उ वलं तं दुगुणं होइ चक्कवट्टिस्स । तत्तो बला बलवग्गा अपरिमियवला जिणवरिंदा ।। ३ ॥ --प्रवचन सारोद्धार करोड़ चक्रवर्ती का वल एक देव में, करोड़ देवों का वल एक इन्द्र में, अनन्त इन्द्रों का बल तीर्थकर की कनिष्ठ अंगुली में।। ३ (क) पुण्ड्रक्षु चारिणीनामनातंकानां गवां लक्षस्य....."यावदेवस्या गो: सम्बधियत् क्षीरं"... -जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति वृत्ति, वक्षस्कार २ (ख) प्रवचनसारोद्धार वृत्ति द्वार २६६ । (ग) दूध को मधुर एवं स्वादिष्ट बनाने की ऐसी ही एक कथा बौद्ध (देखें पृष्ठ ८४ पर
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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