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________________ तप और लब्धियां . 'विभूति' को 'अभिज्ञा' कहा गया है। तपस्वी साधक अपनी उत्कृष्ट तपस्याके द्वारा जो शक्ति प्राप्त करता है, उसे वहाँ 'अभिज्ञा' संज्ञा दी गई है। उसके पांच और कहीं-कहीं छह भेद बताये हैं । लब्धियों के भेद यों तो आत्मा की शक्ति अनन्त है, और वह अनन्त रूपों में प्रकट हो सकती है । जितने रूपों में प्रकट हों, उतनी ही लब्धियां बन सकती हैं। फिर भी मूल आगमों में तथा उत्तरवर्ती ग्रन्थों में लब्धियों की गणना करके उनका विस्तार के साथ विवेचन किया गया है। कहीं पर लब्धि के दस भेद, कहीं अठाईस भेद तथा कुछ अन्य नाम गिनाये गये हैं। भगवती सूत्र में पूछा गया है-भगवन् ! लब्धियां कितनी प्रकार की हैं ? ___ उत्तर में बताया गया है-दसविहा लद्धी पण्णत्ता-दस प्रकार की लब्धियां बताई गई हैं। १ नाणलद्धी-ज्ञानलब्धि २ सणलद्धी-दर्शनलब्धि ३ चरित्तलद्धी- चारित्रलब्धि ४ चरित्ताचरित्तलद्धी-चरित्रा चरित्र लब्धि ५ दाणलद्धी-दानलब्धि ६ लाभलद्धी लाभलब्धि ७ भोगलद्धी-भोगलब्धि ८ उवभोगलद्धी-उपभोगलब्धि ६ वीरियलद्धी-वीर्यलब्धि १० इंदिय लद्धी-इन्द्रियल ब्धि ज्ञानल ब्धि के, ५ ज्ञान लब्धि और ३ अज्ञान लब्धि यों आठ भेद बताये गये हैं। दर्शन लब्धि के ३, चारित्र लब्धि के ५, चरित्ताचरित्त लधि का १, १ भगवती सुत्र ६२ सूत्र ३१६
SR No.010231
Book TitleJain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMishrimalmuni, Shreechand Surana
PublisherMarudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
Publication Year1972
Total Pages656
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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