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________________ ६४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य यत' स्पर्द्धा कीदृक् कथय कमल शैवलतते, सहासूया सद्भि खलु पलजनस्यादि कतमा॥६४॥ (उपदेश माला, विशेप वृत्ति, पृष्ठ २३६) हसो के साथ काको की अह-अहमिका, सिंह के साथ शृगाल की ईर्ष्या, कमल के साथ शैवाल की स्पर्धा एव सज्जन मनुष्यो के साथ खल मनुष्यो की असूया निभ नही पाती। यह वात सिंह-गुफावासी मुनि की समझ मे मा गई । उनका मानस श्रमण स्थूलभद्र के अनन्त मनोवल पर सहन-सहस्र साधुवाद दे रहा था। मज्झवि ससग्गीए, अग्गीए जो तया सुवन्न व। उच्छलिय बहलतेओ, स थूलभद्दो मुणी जयउ (इ) ॥ १६ ॥ (उपदेशमाला विशेप वृत्ति, पृ० २४१) स्त्री के ससर्ग मे रहकर भी जिनकी साधना का तेज अग्नि के मध्य प्रक्षिप्त स्वर्ण की भाति अधिक प्रदीप्त हुआ, उन स्थूलभद्र की जय हो। चारो ओर से इस प्रकार स्थूलभद्र की जय बोली जा रही थी । आचार्य सम्भूतविजय के शासन-काल से सम्बन्धित इतिहास की यह घटना अनेक दुर्वल आत्माओ के मार्ग-दर्शन में प्रकाश दीपिका होगी। सिंह-गुफावासी मुनि के जीवन का यह प्रसग विनय भाव को भी पुष्ट करता als जो कुणइ अप्पमाण, गुरुवयण न य लहइ उवएस । सो पच्छा तह मोअइ, उवकोसघरे जह तवस्सी ।। ६१ ॥ (उपदेशमाला विशेष वृत्ति, पृ० २४३) जो गुरु के वचनो को अप्रमाण करता है, विनयपूर्वक उन्हें स्वीकार नहीं करता है वह उपकोशा के घर समागत सिंह-गुफावासी तपस्वी की भाति अनुताप करता है। उपदेशमाला का यह श्लोक कोशा के स्थान पर उपकोशा की सूचना देता है। उपकोशा कोशा गणिका की भगिनी थी। ____ आचार्य सभूतिविजय का शिष्य परिवार विशाल था। कल्पसूत्र स्थविरावली मे उनके बारह शिष्यो का उल्लेख है । उनके नाम इस प्रकार हे (१) नन्दनभद्र, (२) उपनदनभद्र, (३) तीसभद्र, (४) यशोभद्र, (५) सुमणिभद्र, (६) मणिभद्र, (७) पुण्यभद्र, (८) स्थूलभद्र,(8) उज्जुमइ, (१०)जम्बू, (११) दीहभद्र, (१२) पडुभद्र। आचार्य सभूतविजय का श्रमणी वर्ग अत्यन्त प्रभावक था। यक्षा, यक्षदिन्ना
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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