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________________ सयम-सूर्य आचार्य सम्भूतविजय ६५ भूता, भूतदिन्ना, सेणाा, वेणा, रेणा-सातो महामात्य शकटाल की प्रतिभासपन्न पुनिया आचार्य सभूतविजय के पास दीक्षित हुई थी। इनका दीक्षा-सस्कार आर्य स्यूलभद्र के बाद हुआ था। महामात्य पद पर गौरवप्राप्त राजानन्द की अपार कृपा का केन्द्र, मुकोमल तनु, सरल स्वभावी बुद्धि वैभव से समृद्ध श्रीयक ने भी वी०नि० १५३ (वि०पू० ३१७) मे आचार्य सभूतविजय के पास दीक्षा गहण की थी। एक ही आचार्य के शासन-काल मे दीक्षित होने वाले वन्धुद्वय (आर्य स्यूलभद्र एव मुनि श्रीयक) मुनियों के मिलन का कोई भी प्रसग ऐतिहासिक सामग्री मे उपलब्ध नहीं हो सका है । मुनि श्रीयक से आर्य स्थूलभद्र लगभग ७ वर्ष पहले दीक्षित हो चुके थे। ___यक्षादि भगिनियो के साथ भ्राता श्रीयक का घटना-प्रमग अत्यन्त मार्मिक एव हृदयद्रावक है। श्रीयक का शरीर अत्यन्त कोमल था। एक भक्त तप भी उसके लिए कठिन था। एक दिन ज्येष्ठ भगिनी साध्वी यक्षा से प्रेरणा पाकर मुनि श्रीयक ने पर्युषण पर्व के दिनो में एक बार प्रहर, अधं दिन एव अपाधं दिन तक भोजन ग्रहण करने का परित्याग कर लिया था। मुनि श्रीयफ के लिए तपः साधना का यह प्रथम अवमर था। अन्न का एक कण न ग्रहण करने पर भी दिन का अधिकाश भाग सुखपूर्वक कट गया। भगिनी यक्षा ने कहा-"भ्रात । रात्रि निकट है। नीद मे सोते-सोते ही समय कट जाएगा। तप. प्रधान पर्युपण चल रहा है। अव उपवास कर लो।"ज्येष्ठ भगिनी की शिक्षा को ग्रहण कर श्रीयक ने उपवाम तप स्वीकार कर लिया। निशा मे भयकर कष्ट हुमा । क्षुधा-वेदना-बढती गयी। देव गुरु का स्मरण करता हुआ श्रीयक स्वर्गगामी बना। नाता के स्वर्गवास की बात सुनकर साध्वी यक्षा को तीन आघात लगा। भाई की इस आकस्मिक मृत्यु का निमित्त स्वय को मानती हुई वह उदास रहने लगी। ऋपिघात जैमे भयकर पाप के प्रायश्चित्त के लिए उसने अपने को सघ के सामने प्रस्तुत किया । सघ ने साध्वी यक्षा को निदोप मानते हुए कोई दड नही दिया पर इमसे यक्षा के मन को सतोप नहीं था। उसने अन्न ग्रहण करना छोड दिया । मघ की सामूहिक माधना से शामन देवी प्रकट हुई। वह साध्वी यक्षा के मनस्ताप को उपशात करने के लिए उसे महाविदेह क्षेत्र मे श्री सीमधर स्वामी के पास ले गयी। श्री सीमधर स्वामी ने बताया-"मुनि श्रीयक की मृत्यु के लिए तुम दोपी नही हो।" वीतराग प्रभु के अमृतोपम वचन मुनकर साध्वी यक्षा को तोप मिला । उद्वेलित मन को समाधान मिला । जैन शासन मे अत्यधिक प्रसिद्ध चार चूलिकाओ की उपलब्धि साध्वी यक्षा को श्री सीमधर स्वामी के पास हुई। इन चार चूलिकाओ मे से दो चूलिकाओ का सयोजन दशवकालिक सूत्र के साथ एव दो चूलिकाओ का सयोजन आचाराग सूत्र के साथ हुआ है । ये चूलिकाए
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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