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________________ ४६. प्रतिभा-प्रभाकर आचार्य रत्नप्रभ आचार्य रत्नप्रभ सस्कृत भाषा के अधिकारी विद्वान् थे। न्याय एव दर्शनशास्त्र के वे विशेषज्ञ थे। अपने गुरु आचार्य वादिदेव के ग्रन्थो का उनके जीवन पर अमाधारण प्रभाव था । साहित्य-रचना मे आचार्य रत्नप्रभ की लेखनी अनावाघ चली। परिमाण की दृष्टि से उनका माहित्य बहुत कम है, पर जो कुछ उन्होंने लिखा वह अत्यधिक सरस, सुन्दर एव विद्वद्भोग्य लिखा। साहित्य-जगत् मे उनकी अनुपम कृति 'रत्नाकरावतारिका' है । वह स्याद्वादरत्नाकर का प्रवेश मार्ग है। ताकिक शिरोमणि आचार्य वादिदेव द्वारा निर्मित 'प्रमाणनयतत्त्वालोक' ग्रन्थ की व्याख्या स्वरूप चौरासी हजार श्लोक परिमाण स्याद्वाद-रत्नाकर अत्यन्त गूढ टीका ग्रन्थ है । समासो की दीर्घता एव कठिन शब्द सयोजना के दुर्ग को भेदकर इस ग्रन्थ के शब्दार्थ एव पद्यार्थ तक पहुच पाना बहुत श्रमसाध्य है। आचार्य रत्नप्रभ रत्नाकरावतारिका की रचना का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कृति के प्रारम्भ मे लिखते है-"क्वापि तीर्थकग्रन्थग्रन्थिसार्थसमर्थकदर्थनोपस्थापितार्थानवस्थितप्रदीपायमानप्लवमानज्वलन्मणिफणीन्द्रभीषणे, सहृदयसैद्धातिकतार्किकवैयाकरणकविचक्रवर्तिसुविहितसुगृहीतनामधेयास्मद्गुरुश्रीदेवसूरिभिविरचिते स्याद्वादरत्नाकरे न खलु कतिपय तर्कभापातीर्थमजानन्तोऽपाठीना अघीवराश्च प्रवेष्टु प्रभविष्णव इत्यतस्तेपामवतारदर्शन कर्तुमनुरूपम् ।" ___ 'दर्शनान्तरीय मन्तव्यो का निरसन एव अपने मन्तव्य का प्रतिपादन करती हुई यह स्याद्वाद-रत्नाकर टीका क्लिष्ट है । तर्क की भाषा को नही जानने वाले अकुशल पाठको का अकुशल तैराक की भाति उसमे प्रवेश पाना कठिन है। उनकी सुगमता के लिए मैंने इस ग्रन्थ की रचना की है।" आचार्य रत्नप्रभ ने उक्त पाठ में सहृदय, सैद्धान्तिक, ताकिक, वैयाकरण, कवि-चक्रवर्ती जैसे गौरवमय विशेषण प्रदान कर अपने गुरु वादिदेव के प्रति अपार सम्मान प्रकट किया है। स्याद्वाद रत्नाकर का अवगाहन करने के लिए आचार्य रत्नप्रभ की रत्नाकरावतारिका यथार्थ मे ही रत्नाकरावतारिका सिद्ध हुई है । उपमा की भापा मे
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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