SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 356
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३४ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य रसिक, विद्वानो का सम्मानदाता, उदारहृदय एव सर्वधर्मसमदर्शी जैन महामात्य वस्तुपाल को पाकर गुजरात की धरा धन्य हो गयी थी। उसका भाग्याकाश श्री शशिसम्पन्न होकर चमक उठा था। मध्यकाल की धर्म-प्रभावक जैन श्रावक मण्डली मे अमात्य वस्तुपाल का स्थान सर्वोत्तम था । सरस्वती कण्ठाभरणादि चौवीस उपाधियो से अलकृत एव सग्राम-भूमि मे तिरेसठ बार विजय प्राप्त करने वाला वस्तुपाल अमात्य धर्म-प्रचार कार्य में भी सतत प्रयत्नशील रहता था। धर्मप्रभावना के हेतु उसने (३१४१८८००) रूप्य राशि का व्यय किया था। श्री वस्तुपाल का यश दक्षिण दिशा मे श्री पर्वत तक, पश्चिम मे प्रभास तक, उत्तर मे केदार पर्वत तक और पूर्व मे वाराणसी तक विस्तृत था। इतिहास-प्रसिद्ध इस महामात्य को प्रभावित करने वाले वर्माचार्यो मे जयसिंह सरि, नरचन्द्र सूरि, शान्ति सूरि, नरेन्द्रप्रभ सूरि, विजयसेन सूरि, वालचन्द्र सूरि आदि कई आचार्यों के नाम है। उनमे एक नाम आचार्य उदयप्रभ सूरि का भी है। उदय प्रभाचार्य धर्म-प्रचारक थे एव यशस्वी साहित्यकार भी थे। धर्मशर्माभ्युदय महाकाव्य, आरम्भ सिद्धि, उपदेश माला, कणिका कृति आदि कई ग्रन्थो की उन्होने रचना की। सस्कृत भाषा मे निवद्ध नेमिनाथ-चरित्न भी आचार्य उदयप्रभ द्वारा रचित माना गया है । आचार्य उदयप्रभ के ग्रन्थो मे 'सुकृति-कल्लोलिनी' नामक ग्रन्थ अत्युत्तम है। यह वस्तुपाल, तेजपाल के धार्मिक कार्यों का प्रशस्ति-काव्य है । इस काव्य मे वस्तुपाल की वशावली तथा चालुक्य वश के राजाओ का वर्णन भी है। वस्तुपाल ने इस काव्य को प्रस्तर पर खुदवाया था। इस काव्य की रचना वी० नि० १७४८ (वि० १२७८) मे हुई थी। इस आधार पर आचार्य उदयप्रभ का समय वी० नि० की १५वी शताब्दी (वि० १३वी सदी का उत्तरार्ध) है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy