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________________ ३३६ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य स्याद्वाद रत्नाकर महाशैल है। उसके उच्चतम शिखर पर पहुचने के लिए रत्नाकरावतारिका सुगम सोपान-पक्ति है। मधुर स्वरो मे सगीयमान सगीत, भावमयी कविता एव आकठ तृप्ति प्रदायक सुधाविन्दु जैसा आनन्दकारी यह ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ मे कान्तपदावलि का प्रयोग एव मनोमुग्धकारी शब्द-सौष्ठव काव्य जैसी प्रतीति कराता है। धर्मदास कृत 'उपदेश माला' पर आचार्य रत्नप्रभ ने ११५० श्लोक परिमाण दोघट्टी वृत्ति (उपदेश माला विशेप वृत्ति) की वी० नि० १७०८ (वि० १२३८) मे रचना की थी। विपुल इतिहास सामग्री को प्रस्तुत करते हुए यह कृति भी साहित्य-जगत् मे अत्यन्त मूल्यवान है। प्राकृत भाषा मे भी आचार्य रत्नप्रभ का ज्ञान अगाध था। नेमिनाथ-चरित्र की रचना उन्होने वी० नि० १७०२ (वि० १२३२) मे की थी। यह उनकी प्राकृत रचना है। आचार्य रत्नप्रभ की इन दोनो कृतियो मे उल्लिखित सम्वत् के आधार पर उनका समय वी० नि० १६वी शताब्दी का उत्तरार्द्ध और १७वी शताब्दी का पूर्वार्द्ध प्रमाणित होता है।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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