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________________ ४५. उदारहदय आचार्य उदयप्रभ उदयप्रम नागेन्द्र गच्छ के प्रभावी भाचार्य थे । शान्ति सूरि के शिष्य अमरचन्द्र सूरि, उनके शिष्य हरिभद्र, हरिभद्र के शिष्य विजयसेन तथा विजयसेन के शिष्य उदयप्रभ थे। ___ गुजरात के राजा वीरधवल पर उनका अप्रतिहत प्रभाव था। वीरधवल के महामात्य वणिक् पुन वस्तुपाल एव तेजपाल दोनो भाई जैन थे। वीरधवल के यश को दिगान्तव्यापी बनाने में दोनो का अपूर्व योगदान था। युगल वन्धु एक ओर महामात्य, सेनापति एव अर्थ-व्यवस्थापक थे दूसरी ओर प्रचण्ड योद्धा, महादानी एव धार्मिक भी थे।। एक वार शक्तिशाली मलेच्छ सेना के आगमन की सूचना पाकर गुर्जर नरेश श्री वीरधवल चिन्तित हुमा। उसने अमात्य वस्तुपाल को बुलाकर कहा"गर्दभीविद्यासिद्ध गर्दभिल्ल राजा भी इन म्लेच्छो के द्वारा पराभूत हो गया था। महाशक्तिशाली राजा शिलादित्य का राज्य भी इनसे ध्वस्त हो गया। यह म्लेच्छ समुदाय दुर्जेय है। हमे अपनी सुरक्षा के लिए क्या करना चाहिए ?" वस्तुपाल ने कहा-"राजन् । आप चिन्ता न करें। म्लेच्छो के सामने रणभूमि मे खडा होने के लिए मुझे प्रेपित करें।" राजा ने वैसा ही किया । वस्तुपाल और तेजपाल युगल बन्धुओ की शक्ति के सामने म्लेच्छ सेना पराजित हो गयी। ____ वणिक्पुत्र व्यापार-कुशल ही नही होते, क्षत्रिय जैसा उद्दीप्त तेज भी उनमे होता है। यह वात दोनो अमात्यो ने सिद्ध कर दी। महायशोभाग वस्तुपाल का व्यक्तित्व कई विशेषताओ से सम्पन्न था। उसके जीवन मे लक्ष्मी, मरस्वती एव शक्ति का आश्चयजनक समन्वय था । हिन्दुस्तान मे पूर्व से पश्चिम एव उत्तर से दक्षिण पर्यन्त दूर-दूर तक महामात्य की ओर से आर्थिक सहायता प्राप्त थी। एव वह स्वय परम विद्वान् महाकवि था। वाग्देवी सूनु तथा सरस्वती-पुन की उपाधियो से वह विभूपित था। राजा भोज की तरह वह विद्वानो का आश्रयदाता था। वस्तुपाल ने विद्यामण्टल की स्थापना की थी, जिससे सस्कृत साहित्य की महान् वृद्धि हुई। असाधारण व्यक्तित्व के धनी, महादानी, सवल योद्धा, कवि, लेखक, साहित्य
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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