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________________ आचार्यों के काल का सक्षिप्त सिंहावलोकन ११ पर आरुढ हुए और वी० नि० ३३० (वि० पू० १४० ) के बाद उनका स्वर्गवास हुआ था । अत वी० नि० ३०० से ३३० के बीच मे इस भागम वाचना का का सभव है । जैन शासन की प्रभावना मे विशिष्ट विद्यासम्पन्न आचार्यो का योग आचार्य कालक इस युग के विशिष्ट प्रभावोत्पादक विद्वान् थे और प्रवल धर्म प्रचारक भी । जैन इतिहास ग्रन्थो मे प्रमुखत. कालक नामक चार आचार्यो का उल्लेख है । प्रथम कालक श्यामाचार्यं के नाम से भी प्रसिद्ध हैं । वे निगोद - व्याख्याता, शक्रसस्तुत एव पन्नवणा सूत्र के रचनाकार थे । उनका कालमान वी० नि० ३३५ (वि० पू० १३५) है। द्वितीय कालक गर्दभिल्लोच्छेदक विशेषण से विशेषित है । वे सरस्वती के वधु थे। उनका समय वी० नि० ४५३ (वि० पू० १७) है।" तृतीय कालक वी० नि० ७२० ( वि० २५० ) मे हुए है । उनके जीवन सवधी घटना - विशेष उपलब्ध नही है । चतुर्थ कालक वी० नि० ६६३ (वि० ५२३ ) मे हुए हैं। वालभी युगप्रधान पट्टावली के अनुसार वीर निर्वाण की पट्ट परपरा मे वे सत्ताईसवे पुरुष थे । सभवत देवधिगणी क्षमाश्रमण की आगम वाचना के समय नागार्जुनीय वाचना के प्रतिनिधि रूप में आचार्य कालक (चतुर्थ) उपस्थित थे । विदेश जाकर विद्याबल से शको को प्रभावित करने वाले द्वितीय कालक थे । प्रतिष्ठानपुर का राजा शातवाहन उनका परम भक्त था। यह वही शातवाहन था जिसने भृगुकच्छ नरेश नभसेन से कई युद्ध किए और बार-बार उनसे वह पराभूत होता रहा । शातवाहन ने अत मे षड्यन्त्र रचकर भृगुकच्छ नरेश पर विजय पायी । वलमित्र और भानुमित के द्वारा पावस काल मे निष्कासित किए जाने पर अवन्ति से आचार्य कालक प्रतिष्ठानपुर मे आए और राजा शातवाहन की प्रार्थना पर उन्होने वहा चतुर्थी को सम्वत्सरी पर्व मनाया । श्रमणो ने सम्वत्सरी पर्व के प्रवर्तित दिन को एक रूप मे मान्य किया - यह आचार्य कालक के श्रुतम् व्यक्तित्व का ही प्रभाव था । चतुर्थी को सम्वत्सरी मनाने का यह समय वी० नि० ० ४५७ से ४६५ (वि० पू० १५ से ७) तक अनुमानित किया गया है । पावस काल मे आचार्य कालक को निष्कासित करने वाले वलमित्र भानुमित के अवन्ति शासन का लगभग यही समय है । श्रुताध्ययन मे प्रमत्त शिष्यो को छोडकर आचार्य कालक एकाकी अवन्तिसे स्वर्णभूमि की ओर पस्थित हो गये थे । अपने प्रशिष्य सागर को वोध देते हुए
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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