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________________ आचार्यो के काल का सक्षिप्त सिंहावलोकन ६ शिकवाद के अभिमत से जीव, अजीव और नो अजीव रूप तीन राशि की सिद्धि मानी गई है । आर्य महागिरि और सुहस्ती के गण भिन्न-भिन्न होते हुए भी प्रीतिवश दोनो आचार्य एकसाथ विचरण करते थे ।" आर्य हस्ती के स्थविर आर्य रोहण आदि बारह प्रमुख शिष्य थे । इनसे उद्देहगण, उड़पाटितगण आदि गणो का ओर प्रत्येक गण से कई शाखाओ और कुलो का जन्म हुआ । इन शाखाओ प्रशाखाओ मे मानव गण से पनपी एक शाखा का नाम सौराष्ट्रका है । यह सोराष्ट्रिका शब्द आचार्य सुहस्ती के शिष्य गण का सौराष्ट्र क्षेत्र से सम्बद्ध होने का सकेतक है । विद्वानो का अनुमान है श्रमणो द्वारा धर्म प्रचार का कार्य सौराष्ट्र तक विस्तृत हो चुका था । कई महत्वपूर्ण घटनाए आचार्य सुहस्ती के जीवन से सम्बद्ध है । आचार्य सुहस्ती के शिष्य वर्ग में आहार - गवेषणा - सम्बन्धी शिथिलाचार को पनपते देखकर आचारनिष्ठ आर्य महागिरि द्वारा साम्भोगिक विच्छेद की घटना सर्वप्रथम इस समय घटित हुई थी । " अवन्ती के श्रीसम्पन्न वसुभूति श्रेष्ठी को अध्यात्मवोध देने का श्रेय भी आचार्य सुस्ती को है । गणाचार्य, वाचनाचार्य एव युगप्रधानाचार्य की परम्परा भी आचार्य सुहस्ती के समय से प्रारम्भ हुई । आचार्य सुहस्ती और सम्राट् सप्रति 1 जैन शासन की प्रभावना मे भी आचार्य सुहस्ती और सम्राट् सम्प्रति का महान् योगदान है । मौर्यवंशी कुणाल पुत्र सम्राट् सम्प्रति आचार्य सुहस्ती से सम्यक्त्व रत्न प्राप्त कर जैन दर्शन का व्रतधारी श्रावक बना और उसने जैन दर्शन प्रभावी जो यशस्वी कार्य किए वे इतिहास पृष्ठो मे अकित रहेगे । जैन सम्राट् सम्प्रति जैन राजाओ मे प्रथम सम्राट् था जिसने अपने राजपुरुषो को जैन धर्म का प्रशिक्षण देकर श्रमण परिधान सहित उन्हे अनार्य क्षेत्रो मे प्रेपित किया एव उनसे अधार्मिक लोगो मे जैन सस्कारो के वीज वपन करवाकर अनार्य भूमि को आगमधर चरित्रनिष्ठ श्रमणो के लिए विहरण योग्य बना दिया था।" जैन धर्म और सम्राट् खारवेल उडीसा प्रान्त का महाप्रतापी शासक खारवेल सुदृढ जैन उपासक था । वह महाराज चेटक के पुत्र शोभनराय के उत्तराधिकारियो मे से था । उनका दूसरा नाम महामेघवाहन था। जैनाचार्यो की शृंखला में आचार्य भद्रवाहु और
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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