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________________ ८ जैन धर्म के प्रभावक आचार्य आर्य स्थूलभद्र के सन्ध्या काल मे आर्य महागिरि जाति स्थविर, श्रुत- स्थविर एव पर्याय स्थविर भी वन चुके थे । आर्य सुहस्ती उस समय न जाति-स्थविर थे, न श्रुत स्थविर थे, न पर्याय स्थविर ही । आर्य स्थूलभद्र ने भावी आचार्य पद के लिए गम्भीरता से अध्ययन किया और उन्होने इस पद पर दोनो की नियुक्ति एकसाथ की। निशीथ चूर्णि के मनुसार आर्य स्थूलभद्र ने आचार्य पद का दायित्व आर्य महागिरि को न देकर आर्य सुहस्ती को प्रदान किया था। १७ दशाश्रुतस्कन्ध स्थविरावली की परम्परा में आचार्य सम्भूतविजय के उत्तराधिकारी आचार्य स्थूलभद्र एव स्थूलभद्र के उत्तराधिकारी आचार्य सुहस्ती थे । आर्य महागिरि के बहुल आदि आठ प्रमुख शिष्य थे । उनमे से आर्य महागिरि के उत्तराधिकारी गणाचार्य बलिस्सह थे । आर्य महागिरि के अन्य शिष्य भी जैन धर्म के महान् प्रभावक थे । कल्पसून स्थविरावली के अनुसार आर्य महागिरि के आठवे शिष्य कौशिक गोली रोहगुप्त ( पडुलूक ) से राशिक मत की स्थापना हुई। पडुलूक वैशेषिक सूत्रो के कर्त्ता भी माने गए है । तैराशिक मत की स्थापना का इतिहास सम्मत समय ची० नि० ५४४ ( वि० स०७४ ) है । इस आधार पर तैराशिक मत के सस्थापक आर्य महागिरि के शिष्य रोहगुप्त प्रमाणित नही होने । समवायाग टीका के अनुसार श्रीगुप्त के शिष्य रोहगुप्त ( पडुलूक ) से अन्तरजिका नगर मे तैराशिक मत का जन्म हुआ था । आर्य महागिरि के प्रशिष्य परिवार से निह्नववाद के प्रसव का इतिहास निर्विवाद है । कौडिन्य के शिष्य मुनि अश्वमित्र के द्वारा वी० नि० २२० (वि० पू० २५०) के पश्चात् सामुच्छेदिकवाद की स्थापना हुई । धनाढ्य के शिष्य गग मुनि के द्वारा उल्लुका नदी के तीर पर वी०नि० २२८ ( वि० पू० २४२ ) के पश्चात् द्वे क्रियवाद की स्थापना हुई । tfs और धनाढ्य दोनो आर्यं महागिरि के शिष्य एव अश्वमित्र व गग दोनो शिष्य के शिष्य होने के कारण आर्य महागिरि के प्रशिष्य थे । धनाढ्य का दूसरा नाम धनगुप्त भी था । मामुच्छेदिकवाद के अभिमत से प्रत्येक क्षण नारक आदि सभी जीव उच्छिन्न भाव को प्राप्त होते रहते है । यह एकान्तिक पर्यायवाद का समर्थक है, एव वौद्ध दर्शन के निकट है | क्रियवाद के अभिमत से शीत-उष्ण आदि दो विरोधी धर्मों का एकसाथ अनुभव किया जा सकता है ।
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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