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________________ चारित्र-निन्तामणि भाचार्ग जिनदास महत्तर २३५ ५ उत्तराध्ययन १३ प्रज्ञापनासूत्र शरीरपद ६ आचागग १४ जम्बूद्वीप करण ७ स्वकृताग १५ करप ८ निशीथ १६ कल्पविणेप ६ व्यवहार १७ पञ्चकल्प १० दशाथतस्बन्ध १८ जीतकल्प ११ भगवती १६ दशवकालिक १२ जीवाभिगम २० पाक्षिक ___ उनमे प्रथम आठ चर्णिया निनदान महत्तर की बताई गयी है। इनका रचनाग्राम भी यही है। आचागग चूणि एव मूवताग चूणि का चूणि साहित्य मे मौलिक स्थान है। गोल देगा, मिन्यु देश, तानिप्ति, कोकण आदि विभिन्न देशो का प्राकृतिक वर्णन, वहा की परम्पगए, रीति-रिवाज एव मनुग्यो के पारम्परिक सम्बन्धो की चर्चा इन दोनो चूणियों में उपलब्ध है। उत्तगध्ययन चूणि मे अनेक शब्दो की नवीन व्युत्पत्तिया प्राकृत भाषा में उपलब्ध है तथा जिनदाम महत्तर की जीवन परिचायिका मामगी भी मकेत स्प में प्राप्त है। ___ अनुयोग चूणि मै आराम, उद्यान आदि की व्यायया है। दार्वकालिक चूणि को आचार्य हरिभद्र ने वृद्ध विवरण की मज्ञा प्रदान की है। यह चूणि मी अपने विषय की नुष्ठ नामग्री प्रस्तुत करती है। नन्दी चूणि मे माधुरी आगम-वाचना का इतिहाम दिया गया है। इन दोनो चूणियो। अन्त में चूर्णिकार ने अपना नाम निर्देश किया है।' ___ आवश्यक चणि एव निशीथ चूणि अत्यधिक विस्तृत है। विपय मामग्री, भापाप्रवाह एव रचना शैली के आधार पर दोनो चूणिया आगम ग्रन्यो की व्याख्या मान न होकर स्वतन्त्र कृति का आस्वाद प्रदान करती है। पुरातन इतिहास मे मुपरिचित होने के लिए आवश्यक चूणि उपयोगी है। जैन धर्म के आद्य तीर्थकर भगवान् ऋपमदेव का सम्पूर्ण जीवनवृत्त, भगवान् की मुविस्तृत विहार-चर्या, वज्र स्वामी, आर्य रक्षित, वज्रसेन आदि प्रभावशाली आचार्यों के विवध घटना-प्रसग, चेटक एव कुणिक का महासग्राम एव सात निह्नव का प्रमाणिक इतिहाम इस चूणि मे उपलब्ध होता है। इस चूणि के अनुसार गोल्ल देश मे मगिनी एव विप्रदेश मे विमाता से वैवाहिक सवध कर लेने की परम्परा भी प्रचलित थी। लौकिक कथाओ की भी पर्याप्त सामग्री इस चूणि मे प्राप्त की जा सकती है। निशीथ चूणि यथार्थ मे जिनदास महत्तर की अत्यन्त प्रौढ रचना है। इस
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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