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________________ ११ चरित्र-चिन्तामणि आचार्य जिनदास महत्तर आगम के व्याख्याकागे में जिनदाम महत्तर को विशिष्ट स्थान प्राप्त है। वे सस्कृत एव प्राकृत भापा पर विशेष अधिकार प्राप्त विद्वान् थे। चूणि साहित्य के अनुसार जिनदाम महत्तर के पिता का नाम नाग अथवा चन्द्र, माता का नाम गोपा' अनुमानित होता है । देहड,सीह, थोर-तीन उनमे ज्येष्ठ एव देउल, गण, तिइज्जग -तीन उनसे कनिष्ठ सहोदर ये। परिवार के अन्य सदस्यो की सूचना प्राप्त नहीं है। वाणिज्य कुलीन कोटिक गणीय वज्र शास्त्रीय महा विद्वान्, स्व-पर-समय के अभिज्ञाता, धीर, गभीर गोपालगणी महत्तर उनके धर्म गुरु और प्रद्युम्न क्षमाश्रमण उनके विद्यागुरु थे। गुरु द्वारा उन्हे गणी पद प्राप्त हुआ था। योग्यता के आधार पर जनता ने उन्हे महत्तर की उपाधि से विभूपित किया था। साहित्य के क्षेत्र मे जिनदास महत्तर की प्रमिद्धि चूर्णिकार के रूप मे है। व्याख्या साहित्य मे चूणि साहित्य अत्यन्त समृद्ध है। चूर्णिया गद्यमयी है। उनकी भापा सस्कृत-मिश्रित प्राकृत है । चूणिकाल मे मस्कृत अभ्युदय हो रहा है। अत प्राकृत-प्रधान चूणि साहित्य में मस्कृत भाषा का सम्मिश्रण हुआ प्रतीत होता है। ___भाष्य एव नियुक्ति की अपेक्षा चूणि साहित्य अधिक विस्तृत है एव चतुर्मुखी ज्ञान का स्रोत है । गद्यात्मक होने के कारण इस साहित्य मे भावाभिव्यक्ति निधि गति से हो पायी है। शिक्षात्मक कथाओ, धार्मिक आख्यानो एव उपाख्यानो की विपुल सामग्री चणि साहित्य से प्राप्त होती है। इसकी रचना-शैली पुरातन साहित्य से सर्वथा भिन्न है और मौलिक है। भापाशास्त्रीय शोधविद्यार्थियो के लिए यह साहित्य अत्यन्त उपयोगी भी है। श्री जिनदास महत्तर का इस साहित्य को महत्त्वपूर्ण अनुदान है। आगम ग्रन्थो पर विशाल परिमाण मे चूणि साहित्य लिखा गया है। वर्तमान मे जो चूणिया आगम साहित्य पर उपलब्ध है, उनके नाम इस प्रकार है १ आवश्यक ३ नन्दी २ दशवकालिक ४ अनुयोगद्वार
SR No.010228
Book TitleJain Dharm ke Prabhavak Acharya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSanghmitrashreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1979
Total Pages455
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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