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________________ तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी के आचार्य, विद्वान और कवि ४२६ ११२५ के १२: वें शिलालेख में नयकीति सिद्धान्तदेव के शिष्यो में प्रभाचन्द्र का नामोल्लेख है। इससे वे नयकीति के शिष्य थे। नयकीति का स्वर्गवास शक संवत् १०६६ (सन् ११७७-वि० सं० १२३४) में हुआ था । ऐसा शिला लेख नं०४२ से ज्ञात होता है। अतः यह प्रभाचन्द्र विक्रम की १३वी शताब्दी के विद्वान हैं। अण्डय्य इनके पितामह का नाम भी अण्डय्य था। जिनके तीन पुत्र थे। शान्त, गम्मट और वैजण । ज्येष्ठ पुत्र शान्त की पत्नी बल्लब्बे क गर्भ से प्रस्तुत अण्डय्य का जन्म हुआ था। इनका निवास स्थान कन्नड था। इसका रचा हुया 'कब्बिगर' नाम का एक काव्य ग्रन्थ है, जो शुद्ध कन्नड़ी भाषा का ग्रन्थ है। इसमें संस्कृत का मिश्रण नहीं है। इसने जन्न कवि की स्तुति को है । अतएव इसका समय १२४०ई० के लगभग माना जा सकता है । यह ईसा की १३वी शताब्दी का कवि था। शिशु मायण यह होयसल देश के अन्तर्गत नयनापुर नाम का एक ग्राम है। उमको ममीप कावेरी नदी की नहर बहती है भार वहाँ देवराज के इष्टानुमार गजगज ने भगतान नेमिनाथ का विशाल मन्दिर बनवाया है। इस ही ग्राम में उक्त कवि के पितामह मायण मेट्री रहते थे। वे बड़े भारी धनिक और व्यापारी थे। उनकी स्त्री तामरसि के गर्भ से बाममेट्टि नाम का पुत्र हुअा । वाग्ममेट्टि की स्त्री नेमाविका के गर्भ से कवि शिशुमायण का जन्म हुआ था। काणूर गण कं भानुमुनि इसके गुरु थ । कवि ने दो ग्रथों की रचना की है। त्रिपुर दहनसागत्य, और अंजनाचरित । इनमें अजना चरित की रचना कवि ने बेलुकेरे पुर के राजा गुम्मट देव की रुचि और प्रेरणा से की थी। इनका समय ईसा की १३वी शताब्दी है । पार्श्व पंडित यह पडित सोदत्तिके रदराज वंशी कातिवीर्य (१२०२-१२२०) का सभा कवि था। इसने अपने एक पद्य में कहा है कि-- कार्तवीर्य का पुत्र लक्ष्मणोवीर्य था। यह लक्ष्मणोवीर्य १२२६ में राज्य करता था। बाम्बे की रायल एशियाटिक सोसाइटा के जनल में जो एक शिलालेख प्रकाशित हा है, उसे पार्श्व कवि ने शक सम्वत ११२७ सन् १२०५ मे लिखा था, उसमे लिखा है कि-'काण्डी मण्डल के वेणुग्राम में रदृवंशीय राजाकार्तवीर्य,-जो मल्लिकाजुन के सहोदर भाई थे राज्य करते थे । पोर उन्होंने अपने मण्डल के प्राचार्य शुभचन्द्र भट्टारक के लिये उक्त ग्राम कर रहित कर दिया था। यह शिलालेख पार्श्वकवि का ही लिखा हुआ है । इसमें इसलिए भी सन्देह नही रहता कि कवि, ने अपने 'पार्श्वपुराण' मे जिस कविकुल तिलक विरुद को अपने नाम के साथ जोड़ा है, वही उक्त शिलालेख के भी अन्तिम पद्य में लिखा है। इसमे इस का समय १२०५ के लगभग निश्चित होता है। सुकविजन मनोहर्प शस्यप्रवर्ष बुधजन मनः पद्मिनी पमित्र, कविकुल तिलक आदि इसके प्रशसा सूचक उपनाम थे। इसकी एकमात्र कृति पार्श्व पुराण ग्रन्थ उपलब्ध है, जो गद्य-पद्य-मय चम्पू ग्रन्थ है। इसमें सोलह आश्वास है। ग्रथ के प्रारम्भ में जिनकी स्तुति करके कवि ने सिद्धान्तसेन से लेकर वोरनन्दी पर्यन्त गुरुपों की, और पप पोन्न, रन्न, धनंजय, भूपालदेव, अच्चण्ण अग्गल, नागचन्द्र, बोप्पण आदि पूर्व कवियो की स्तुति की है। कवि ने स्वय अपने इस ग्रन्थ की चार पद्यों में प्रशसा की है । अकलक भट्ट ने अपने शब्दानुशासन (१६०४) म इस ग्रथ क बहुत से पद्य उदाहरण स्वरूप उद्धृत किये हैं कवि का समय सन् १२०५ (वि० स० १२६२) है। कवि जन्न जन्न-का जन्म कम्मे नामक वंश में हना था। इनके पिता का नाम शंकर और माता का नाम गंगादेवी था शंकर हयशालवंशीय राजा नरसिह के यहाँ कटकोपाध्याय (यूद्ध विद्या का शिक्षक या सेनाप
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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