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________________ तेरहवीं और चौदहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य और कवि ४०६ की राजधानी थी, और विद्या का केन्द्र बनी हई थी। और मालवराज्य का शासक परमार वंशी नरेश विन्ध्यवर्मा था। महाकवि मदन की पारिजात मजरी के अनुसार उम विशाल नगरी में चोरासी चोराहे थे। वहां अनेक देशों और दिशाओं गे पाने वाले विद्वानों ओर कला-कोविदो की भीड़ लगी रहती थी। यद्यपि वहां अनेक विद्यापीठ थे, कितु उन राब में ख्यातिप्राप्त शारदा मदन नामक विशाल विद्यापीठ था। वहाँ अनेक प्रतिष्ठित श्रावकों जैनविद्वानों और श्रमणों का निवाम था, जो ध्यान, अध्ययन और अध्यापन में मंलग्न रहते थे। इन सब से धारा नगरी उस समय सम्पन्न और समद्धि को प्राप्त थी। आशाधर ने धारा में निवास करते हए पण्डित श्रीधर के शिष्य पण्डित महावीर में न्याय ग्रीर व्याकरण शास्त्र का अध्ययन किया था । इनकी जाति वघरवाल थी। पिता का नाम 'मल्लखण' और माता का नाम 'श्री रत्नी' था। पत्नी का नाम सरस्वती और पुत्र का नाम छाड था, जिसने अर्जुनभूपति को अनुरंजित किया था। इसके सिवाय इनके परिवार का और कोई उल्लेख नही मिलता। पं० प्राशाधर अर्जुनवर्मा के राज्य काल में ही जैन धर्म का उद्योत करने के लिए धारा मे नलकच्छपुर (नालछा) में चले गये थे । यद्यपि प० प्राशाधर ने अपने जीवन काल में धारा के राज्य मिहामन पर पांच गजानों को बैठे हए देखा था । किन्तु उनकी उपलब्ध रचना, देवपाल और उनके पुत्र जैतुगिव के राय काल में रची गई थीं। इसीसे की प्रशस्तियों में उक्त दोनो गजामों का उल्नेख मिलता है। नालछा में उस समय अनेक धर्मनिष्ठ श्रावकों का प्रावास था। वहा का नेमिनाथ का मन्दिर पाशाधर के अध्ययन और ग्रन्थ रचना का स्थल था। वह उनका एक प्रकार का विद्यापीठ था, जहां नीग-नीम वर्प रह कर उन्होने अनेक ग्रन्थ रने, उनकी टीकारा लिखी गई, और अध्यापन कार्य भी सम्पन्न किया। जैनधर्म ग्रोर जैन माहित्य के अभ्युदय ने लिए किया गया पण्डितप्रवर आशाघर का यह महत्वपूर्ण कार्य उनकी कीर्ति को अमर ग्ववेगा। संवत १२८२ में प्रागाधर जी नालछा से मलखणपुर गरे थे। उग समय वहां अनेक धार्मिक श्रावक रहते थे। मल्ह का पुत्र नागदेव भी बनाना निवामी था, जो मालव राज्य के चगी ग्रादि विभाग में कार्य करता था। और यथाशक्ति धर्म का साधन भी करता था। आशाधर उस समय गहरथाचार्य थे। नागदेव की प्रेरणा से १. "च मी चताप मगदन प्रध नेपालदिगन्नरोपगनाने कवि मरदावला-वोविद रसिक सूकवि संकूले। २. "यो धागमाठजिन प्रमिति वावगार महावीरतः।।" ३ 'यः पुत्रं छाई गुप रमिलार्जनभूतिम्' । ४. 'श्रीमदर्जुनभूपान गज्ये श्रावक संकुले। जैनधर्मोदयार्थ यो नल कच्छपुरे वमत् ।। नलकच्छपर नो नानन्द्रा कहते है। यह स्थान पारा नगरी गे १० कोमकी दरी स्थित है। यहा अब भी जैन मन्दिर और कुछ श्रावको के घर है। ५. साधोमंदितव गवंशमुमणेः सज्जन चुडामणेः । माल्हाख्यारय सुतः प्रतीत महिमा श्री नागदेवोऽभवत् ॥१ पः शुल्कादिपदेप मालवपतेः नावानि युक्तं शिवं । श्री मल्लक्षणया स्वमाथितवस का प्रापयतः श्रियं ।।२ श्रीमत्केशव मेनार्यवर्य वाक्यादुपेयुपा । पाक्षिक श्रावकीभावं तेनमालव मंडले ॥३ राल्लक्षणपुरे तिष्ठन् गृहस्थाचार्य कुजरः । पण्डिताशाधरो भक्त्या विज्ञप्तः सम्यगेकदा । प्रायेणराजकार्येऽवरुद्ध धर्माश्रितस्य मे । भाद्रंकिंचिदनुष्ठेयं व्रतमादिश्यतामिति ॥५ ततस्तेन समीक्षो वै परमागमविस्तरं । उपविष्ट सतामिष्टतस्यायं विधिसत्तमः ।। तेनान्यैश्च यथा शक्तिर्भवभीतरनुष्ठितः। ग्रंथो बुधाशाघरेण सद्धर्मार्थ मथो कृतः॥७ विक्रमार्क व्यशीत्यरद्वादशाब्दशतात्यये । दशम्या पश्चिमे (भागे) कृष्णे प्रथतां कथा ॥ पली श्री नागदेवस्य मंद्याद्धर्मेण नायिका। यासीद्रत्नत्रयविधि चरतीनां पुरस्मरी। -रलत्रय विधि प्रशस्ति
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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