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________________ ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान, आचार्य ३२६ पद्मप्रभ मलधारीदेव पद्मप्रभ मलधारीदेव-मूलसंघ कुन्दकुन्दान्वय पुस्तकगच्छ और देशीगण के विद्वान वीरनन्दी व्रतीन्द्र के शिप्य थे । इनकी उपाधि मलधारी थी, यह उपाधि अनेक विद्वान आचार्यों के साथ लगी देखी जाती है । इनकी बनाई हई पाचर्य कुन्दकुन्द के नियमसार की एक सस्कृत टीका है जिसका नाम 'तात्पर्यवत्ति' है, वत्तिकार ने वत्ति की पप्पिका में अपने लिये तीन विशेषणों का प्रयोग किया है- 'मृविजनपयोजमित्र' 'पंचन्द्रियप्रसारवजित' प्रौर 'गात्रमात्रपरिग्रह' । इन तीन विशेषणों से ज्ञात होता है कि पद्मप्रभ सुकविजन रूप कमलों को विकसित करने वाले मित्र (सर्य) थे । और पंचेन्द्रियों के प्रसार से रहित थे-जितेन्द्रिय । नथा गरीरमात्र परिग्रह के धारी थेनन दिगम्बर थे। अच्छे विद्वान और कवि थे। इन्होंने समयमार के टीनाकार प्राचार्य अमतचन्द्र की तरह नियमसार की तात्पर्यवत्ति में भी अनेक सून्दर पद्य बनाकर उपमहार रूप में यत्र-नत्र दिये है। पद्मप्रभ ने वत्ति में यथा स्थान अनेक विद्वानो ओर उनके ग्रन्धी क पद्यों को ग्रन्थ कर्ता का नाम लेकर या किया किसी नामोल्लेख के उद्धत किये है। उनमें ममन्तभद्र, गिद्धगेन, पज्याद, अमतचन्द्र, सोमदेव, गणभद्र. वादिराज, योगीन्द्रदेव और चन्द्रकीति तथा महामेन का नामोल्लग्न किया। समयसार का अमताशीति एकत्व सप्तति, और श्रतविन्दु नामक ग्रन्थो का उल्लेख किया है। इनके अतिरिक्त वत्तिकार ने 'तथा चोक्तम् महागेन पडितदेवे , वाक्य के साथ निम्न पद्य उद्धत किया है। ज्ञानाद्धिन्नो न चाभिन्नो भिन्नाभिन्नः कथंचन । ज्ञानं पूर्वापरीभूतं सोऽयमात्मेति कौतितः ॥ इसके पश्चात उक्त च पण्णवतिपापडिविजयोपाजिविशालनि महामन पडित देवैः वाक्य के साथ उद्धत किया है : यथावद्वस्तनिर्णीतिः सम्यग्ज्ञानं प्रदीपवत । तत्स्वार्थव्यवसायात्मा कथंचित् प्रमितेः पथक् ॥" ये दोनों ही पद्य 'स्वरूप सम्बोधन' नामक ग्रथ के है, जिगो कर्ता प्राचार्य महामेन हैं। टीकाकारो कानमार छयानवे वादियों के विजेता थे। ग्रार लामा बगाल काति फैल रही थी। इनकी गम परम्परा और गण-गच्छादि क्या है, यह कुछ ज्ञात नहीं होना । टा० ॥orन. उपाध्ये ने स्वरूप सम्बोधन सम्बध में लिखा है कि वे नयसेन के शिष्य थे। श्रियः पति केवल बोधलोचनं, प्रणम्य प्रद्मप्रभ गेध कारणं । करोमि कर्णाटगिरा प्रकाशनं, म्वरूपमंबोधन पंचविशते ।। "श्रीमन्नयसेनपंडित देवळं शिप्यरप्पश्रीमन्महामेनदेवभव्यमार्थगंबोधनार्थ मार्ग स्वरूप संबोधन विशति व ग्रंथमं माइत्तमा ग्रन्थद मादेलोल इष्ट देवता नमस्कार मं म्यडिद पर"। महासेन नामके और भी विटा हए है । एक तो लाड बागड गण के महागेन जो प्रद्यम्नचरित के कर्ता हैं। जो संवत् १०५० के लगभग हए जो -- - - -- - -- - -- --- - ---- १. तद्विद्याढ्यं वीरनन्दि व्रतीन्द्रम् २. मलधारी विशेषण दिगम्बर श्वेताम्बर दोनो ही सम्प्रदायों के मुनियो के साथ संलग्न देखा जाता स्वच्छता के विपरीत मल परीषह की सहन-गीलता का द्योतक है। गलधारी गण्डविमुक्त देव, मलघारी माधव मलधारी बालचन्द्र, मलधारि मल्लिषेण, मलधारिदेव, आदि दिगम्बर, मलधारी हेमचन्द्र, मलघारि अभयदेव मलधारि जिनभद्र आदि श्वेताम्बर । ३. 'इति सूकविजनपयोजमित्र पंचेन्द्रियप्रसरवजित गात्रमात्रपरिग्रह श्री पद्मप्रभमलघारि देव विरचितायां नियमसार व्याख्यायां तात्पर्यवत्ती शुद्ध निश्चियप्रायश्चित्ताधिकारोऽष्टमः श्रुतस्कन्धः ? शियरप्पश्रीमन्महामन प र" । महासेन नामक प्रार
SR No.010227
Book TitleJain Dharm ka Prachin Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmanand Jain
PublisherRameshchandra Jain Motarwale Delhi
Publication Year
Total Pages591
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size65 MB
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