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________________ जैनदर्शन में द्रव्यवाद द्रव्य माना जाता है । नैश्चयिक काल समग्र विश्व मे है, किंतु सूर्य-चन्द्रमा की गति से सापेक्ष समय मनुष्य लोक मे ही है । garatfap14-(Matter and energy) स्पर्श-रस-गध-वर्णवान् पुद्गल -यह जैन-दर्शन का पारिभाषिक शब्द है । स्पर्श, रस, गध और वर्ण युक्त जड पदार्थ पुद्गल कहलाता है। आधुनिक परिवेश में उसे जड या भौतिक पदार्थ के रूप में जाना जाता है, जिसमें विज्ञान-सम्मत 'मेटर' और 'एनजी' दोनो का समावेश हो जाता ससार में जितने भी दश्य पदार्थ हैं सब पुदगल हैं। ध्वनि, प्रकाश चुम्बकत्व, उज्मा आदि जिन्हे विज्ञान कर्जा (एनर्जी) के रूप में स्वीकार करता है, पुद्गल के ही रूप हैं। प्राणी-जगत् के मन, भाषा, श्वास-प्रश्वास, शरीर, आहार आदि से सवधित समस्त प्रवृत्तियो पुद्गल-शक्ति के योग से संचालित हैं । जगत के विभिन्न पदार्थों के निर्माण और विनाश का आधारभूत तत्त्व पुद्गलो का सयोग और वियोग ही है । जीव की विविध रूपो में परिणतिया पुद्गलसापेक्ष ही हैं। जीव और पुद्गल का सम्बन्धअनादि कालीन है । वही ससार का हेतु है । पुद्गलो के सयोग से मुक्त होते ही आत्मा का परमात्मतत्त्व प्रकट हो जाता है । वह मिख, बुद्ध और मुक्त अवस्था को प्राप्त कर लेता है। जीवास्तिकाय--(Soul, substance possessing consciousness) चैतन्ययुक्त अमूत्तं अवयवी द्रव्य का नाम जीव है । वह असख्य प्रदेशी पिड है, फिर भी अविभाज्य है । ___जीव का लक्षण है उपयोग-चेतना की मक्रियता। स्वसवेदन और मुख दु ख का मवेदन । जीव का अस्तित्व कालिक है । स्वतत्र है। वह जड तत्त्व से उत्पन्न नहीं होता और न कभी जड रूप में परिवर्तित होता है । मसारी जीव कर्म-बद्ध होता है । कम-शरीर की प्रेरणा से वह ससार में भ्रमण करता है, नाना योनियों में सुख-दुख का अनुभव करता है । उसमें सकोच-विस्तार की अद्भुत क्षमता है । जन्मान्तर की याया में जब उसे छोटा गरीर मिलता है तो उमी में समा जाता है और जब वडा शरीर मिलता है तो उतना विस्तार पा लेता है। जैन-दर्णन का जीव-विज्ञान सूक्ष्म विश्लेषण का विषय है। जीव का अस्तित्व, उम के भेद-अभेद, विकास-क्रमः बन्धन और मुक्ति की प्रक्रिया-इत्यादि विषयो को नामान्य अवगति के पश्चात् छह द्रव्यो के सम्बन्ध में कुछ तथ्य और मननीय हैं ० छह द्रव्यो में जीव चेतन है, शेष जड हैं।
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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