SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैनधर्म जीवन ओर जगत् ५४ पनपी ओर फली फूली है, वैसे इसकी रामरेखा में एक ऐसी धारा भी सदा बहती रहती है जो पुनर्जन्म को स्वीकार नही करनी तथा पूर्वपक्ष का भरपूर विरोध भी करती है । उसके अनुसार न पूर्व जन्म होता है और न पुनजन्म । वर्तमान जीवन हो सत्य है यथार्थ है । ये दो धाराए दार्शनिक क्षेत्र मे बराबर चलती रही है । एक को आस्तिक कहा जाता है और दूसरे को नास्तिक | एक है आत्मा को मानने वाली धारा और दूसरी है आत्मा को न मानने वाली धारा । यद्यपि नास्तिक भी आत्मा को - चेतना को सर्वथा अस्वीकार नही करते। फिर भी वे उसको मात्र वार्तमानिक मानते हैं, त्रैकालिक नहीं । उनके अभिमत से चेतना स्वतंत्र द्रव्य नही है । कुछ ऐसे तत्त्वो या परमाणुओं का सयोग होता है, जिससे एक विशेष प्रकार की शक्ति उत्पन्न होती है । वही चेतना है, जा शरीर के साथ उत्पन्न होती है और शरीर के विनाश के माथ विनष्ट हो जाती है | मृत्यु के समय वे विशेष प्रकार के परमाणु विखर जाते हैं, उनके साथ चेतना भी विखर जाती है । जब तक जीवन, तब तक चेतना । जीवन समाप्त, तो चेतना भी समाप्त । उसके बाद कुछ नही बचता । न पहले नेतना, न बाद मे चेतना । न पहले जीवन, न बाद मे जीवन । न पूर्वजन्म, न पुनर्जन्म । जो कुछ है, वह वर्तमान ही है । न अतीत, न भविष्य | इस प्रकार ताकिको ने पुनर्जन्म के सिद्धात को अस्वीकृत कर दिया । इस प्रकार अस्वीकृति के पीछे उनका ठोस तर्क यह है कि शरीर हमारे प्रत्यक्ष है, पर चेतना प्रत्यक्ष नही । यदि चेतना जैसी कोई कालिक सत्ता होती तो जरूर दृष्टि का विषय बनती । शरीर मे प्रवेश करते और निकलते समय वह अवश्य दिखाई देती । दूसरा तक उनका यह है कि यदि पूर्वजन्म का अस्तित्व है तो उसकी स्मृति सबको होनी चाहिए । मृतात्माओ से सपर्क बना रहना चाहिए । वितु 1 ऐसा होता नही है । यदि कही कुछ घटित होता भी है तो विरल 1 घटित घटनाओ की प्रामाणिकता असदिग्ध नही, इसलिए जीवन का अतीत और भविष्य तर्क से सिद्ध नही होता । जन्मान्तर के विज्ञान की 1 तार्किक की भाति वैज्ञानिको ने भी लम्बे समय तक सिद्धान्त को स्वीकार नही किया था । इसका कारण यही है कि पहुच भी भौतिक जगत् तक ही थी । उसके प्रयोग और परीक्षण का केन्द्र - बिंदु पदार्थ या पुद्गल ही रहा । जब से विज्ञान ने सूक्ष्म जगत् के रहस्यो को पकडना प्रारम्भ किया, एक नई क्राति घटित हुई । आत्मा को उसने स्वीकार किया या नहीं, पर भौतिक जगत् मे कुछ अभौतिक तत्त्व भी हैं - यह विश्वास निश्चित वैज्ञानिक क्षेत्र मे पनपा है । पुनर्जन्म को स्वीकारने या न स्वीकारने के पीछे मुख्यत दो अवधारए काम कर रही हैं - आत्मवादी धारणा और अनात्मवादी अथवा भौतिक
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy