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________________ पृयजम और पुनर्जनम पाटी धारा सामवादी गनिमोने या किसान ने यही माना कि वह जगत मात्र भोगिर । पाननिय । उनी मान्यता अचारण भी नहीं थी। या पुगतनी म परे नी है, यह जानन या माधन भी उन्हें पन या पृगन पी मीमा में रहने वाला व्यक्ति वात्मा तक कमे पर 7 77 लामा र पो बिना जीवन की लम्बी-परम्परा ज्ञान ६। नोमा में ही आरती । प्रन वात्मा बा, अभौतिक तत्त्व का। नामा मम । , भौतिक, लय है। हमारे भान । साधन म्पनी गति मिरमारे पान के माध्यम है - इन्द्रियां मन गे । ना.मानती मे पं. नाग मात्मा का शान जा साली । मृल। लारमा अमृत है। मूतं मे मूत्त मारा जा 77TTI TIय मेला में जागरण म ही आत्मा । 3 TRITI | चारमा प्रावि मत्ता है। नाम-उमा रोगी वात्रा रगी, बोर प्रकार में TIfTim 7 77 रनो का माध्यम बनता ।। IRRETIT जोर मे का प्रभादित भी योग है। गत 7 प्रोत्याग - या यात्र धारप परतारे ।। IRRITI: मार मोर दूर पा निर्माण 2 - 11 T H र सता रहा य नम आत्मा पम-मुक्त न गा ।
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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