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________________ पूर्व जन्म और पुनर्जन्म पुनर्जन्म के साधक हेतु अगदी दार्शनिकों ने भी नाना हेतुओं मे जन्मान्तरवाद को सिद्ध या उनमें से हैं १शुम भी प, गोव, भय नादि की वृत्तिया होती है | २ शिशु जन्मते ही मां वा स्तनपान करने लगता है । ३ उसमे हमने नजादि की प्रवृत्तिया होती है । उसे गुदु आदि की अनुभूति होती है । ५ उस जीवन का मोह और मयुरा भय होत है । यह समस्या वा ही परिणाम है। उसकी उक्त वृत्तिया और प्रवृत्तियां पूर्वाभ्यास की परिचायक है । पूर्वाभ्यास पुनजन्म के विना सभव 7 याद पुत्र जीवन में ये वृत्तिया परिचित नहीं होती तो नत्पन्न मिधु में ये ग मिनती है ? (श्री मधु न्याययनिया ७ / ९-१० ) । बच्चे की छ मिया से ऐसा लगता है कि उस पुत्र जन्म सिवान की पूणना व पारण वह उसे यह स्पष्ट हो जाता है महभी पूर्वज अंग चोवन उत्तरवस्था है । मोम यो जातिस्मृति पूजन स्मरण । - ५३ का ज्ञान है स्मृति है । मारीव्यक्त नहीं कर सकता। इसे शव को उत्तरवर्ती अवस्था है, परने वाला ममत्त प्रमाण है
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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