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________________ जीवन-शक्ति-प्राण प्राण दम हैं१ क्षोन्द्रिय प्राण २ चक्षुरिन्द्रिय प्राण ३ घ्राणेन्द्रिय प्राण ४ रसनेन्द्रिय प्राण ५ स्पर्शनेन्द्रिय प्राण ६ मनोबल प्राण ७ वचन वल प्राण ८ कायवल प्राण ९ श्वासोच्छ्वास प्राण १० आयुष्य वल प्राण इससे ज्ञात होता है कि हमारे शरीर मे अनेक प्रकार की प्राणधाराए है । इन्द्रिय की अपनी प्राण-धारा है । मन, शरीर और वाणी की अपनी प्राण-धारा है । श्वास-प्रश्वास तथा जीवनी-शक्ति की भी स्वतत्र प्राण-धाराए हैं । चेतना का तेजस-शरीर के साथ योग होता है और प्राणशक्ति उत्पन्न हो जाती है । इन प्राण-धाराओ के आधार पर शरीर की विभिन्न क्रियाओ का सचालन होता है । इस सदर्भ मे एक वात विशेप ज्ञातव्य है कि पर्याप्ति और प्राण--ये न तो चेतना की विशुद्ध अवस्था में होते हैं और न अचेतन मे होते हैं। ये पेतन और अचेतन के सयोग मे उत्पन्न होते हैं। ससार मे जितने प्राणी है, वे सब यौगिक हैं । चेतन और अचेतन (पुद्गल) के सयोग की अवस्था मे हैं । चैतन्य का शुद्ध स्वरूप प्रकट न होने के कारण वे केवल पंतन्य की भूमिका में अवस्थित नहीं हैं । वे न्यूनाधिक मात्रा मे ही सही अनुभव-शक्ति और ज्ञान-शक्ति से सम्पन्न हैं । इमलिये केवल अचेतन (जड) फी भूमिका में नहीं हैं बल्कि चेतन और अचेतन की सयुक्त भूमिका मे प्राणियो के शरीर के माध्यम से जो क्रियाए होती हैं, वे सव नात्मशक्ति और पोद्गलिक शक्ति दोनो के पारस्परिक सहयोग से सम्पन्न होती है। पर्याप्ति पोद्गलिक गक्ति है और प्राण आत्मिक शक्ति है। पर्याप्तिया शक्ति-स्रोत हैं, जबकि प्राण शक्ति-पेन्द्र । इनमे परस्पर फाय-फारण-सबध है । सच्या-विस्तार को सक्षेप में लेने पर दोनो की सख्या समान हो जाती है। पर्याप्ति प्राण जाहार पर्याप्ति जायुप्य प्राण गरीर पर्याप्ति बार बल प्राण
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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