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________________ ४० जैनधर्म जीवन और जगत् प्राण-शक्ति का मूल्य-स्रोत तेजस शरीर है। तेजस शरीर हमारे समूचे स्थूल शरीर में फैला हुआ है । फिर भी उसके दो विशेष केन्द्र हैंमस्तिष्क और पृष्ठभाग । वहा से निकलकर तैजस शक्ति शरीर की सारी क्रियाओ का संचालन करती है । हालाकि तैजस शरीर से एक प्रकार की प्राण-शक्ति प्रवाहित होती है। यह प्राण-शक्ति स्थूल-शरीर के साथ जुडकर भनेक प्रकार के कार्य करती है। कार्य-भेद के कारण वह दस भागो मे विभक्त हो जाती है। निम्नाकित रेखाकन से प्राण की उत्पत्ति और उसके परिपथो का स्पष्ट ज्ञान हो सकता है . - प्राण प्राण झोन प्राण जन प्राण पचनमा काय प्राण यासोन्यास प्राण -- -----बाण --- रसम माग "आयुष्य प्राण - - - . . . - - - । स तेजसशरीर
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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