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________________ १५४ जैनधर्म जीवन और जगत् वार पर थी। उनका सारा परिवार जैन दर्शन और सिद्धातो के प्रति आस्थावान था। उनके सात कन्यायें थी जो परम विदूपी और आदर्श नारिया थी। वे अपने पिता के आदर्श सस्कारो मे ढली हुई थी। राजा चेटक की यह प्रतिज्ञा थी कि वह अपनी कन्याओ को सार्मिक राजाओ के साथ ही ब्याहेगा। उन्होने उस युग के प्रख्यात राजाओ के साथ अपनी सुसस्कारी पुत्रियो को व्याहा । उनमें से १. प्रभावती-वीतभयपुर (सिंधु सौवीर के) के राजा उदायन को २ पद्मावती-अगदेश के राजा दधिवाहन को ३ मृगावती-वत्सदेश के राजा शतानीक को ४ शिवा-उज्जनी नरेश चण्डप्रद्योत को ५ ज्येष्ठा-महावीर के भ्राता नन्दीवर्धन को ६ चेलना-मगध सम्राट् श्रेणिक बिम्बसार को ब्याही गई थी। एक कन्या सुज्येष्ठा महावीर के सघ मे दीक्षित हो गई। यद्यपि सम्राट् श्रेणिक पहले जैन नही था, लेकिन वह उस शक्तिशाली गणतत्र के सर्वोच्च नेता के साथ स्थायी मैत्री सबध स्थापित करना चाहता था । इधर चेटक की पुत्रियो की सर्वगुणसम्पन्नता सर्वत्र सुविश्रुत थी। __ श्रेणिक ने राजा चेटक के पास उसकी पुत्री से विवाह करने का । प्रस्ताव भेजा। राजा चेटक ने वह स्वीकार नही किया। क्योकि वह अपने प्रण के अनुसार किसी विधर्मी नरेश को अपनी पुत्री नहीं दे सकता था। सम्राट् श्रेणिक ने फिर छल-बल से उनकी सबसे छोटी पुत्री चेलना को पाया, जिसे एक आदर्श नारी, दृढ श्रद्धालु और तत्त्वज्ञा श्राविका के रूप मे जैन सघ मे गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ। वैसे चेटक की सभी पुत्रिया अपने समय की विख्यात नारिया हुई हैं। जैन परम्परा मे जिन १६ आदर्श नारियो का वर्णन आता है, वे सोलह सतियो के नाम से जानी जाती हैं। उनमे से चार तो महाराज चेटक की पुत्रिया ही थी, जिनके नाम हैं--प्रभावती, पदमावती; मृगावती और शिवा। महाराज चेटक का साम्राज्य वैशाली गणतत्र के नाम से प्रसिद्ध था। उनके गणतत्र की अपनी विरल विशेषताए थी। गण के सभी सदस्यो में मतैक्य, सौहार्द, परस्पर आदर के भाव, अपने सिद्धातो के प्रति दृढता आदि की भावना प्रबल थी। उनमे राष्ट्रीयता की भावना अद्वितीय थी। महात्मा बुद्ध ने इनकी सहिष्णुता की बहुत प्रशसा की है। चेटक के दस पुत्रो मे से 'सिंह' वज्जी सघ के प्रधान सेनानायक थे । राजा चेटक वारहव्रती श्रावक थे। वे दृढ़ प्रतिज्ञ थे। समरागण मे भी उन्हे
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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