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________________ वैशाली गणतत्र के अध्यक्ष जैन सम्राट् चेटक १५५ निहत्थे पर वार न करने का और एक दिन में एक से अधिक बाण न चलाने का सकल्प था, जिसका पालन उन्होने घोर आपत्कालीन स्थिति में भी किया। ___ अपने दोहिय कणिक के साथ महाराज चेटक का भीषण सग्राम हुआ, जो रथमूसल सग्राम या महाशिला-कटक सग्राम के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध है । उस परिस्थिति मे भी वे अपने व्रतो की कठिन कसौटी पर खरे उतरे । प्रण की सुरक्षा के लिए उन्होने अपने प्राणो का बलिदान कर दिया। कवि की ये पक्तिया कितनी सार्थक हैं प्रण करना है सहज कठिन है लेकिन उसे निभाना, सवसे वडी जाच है, व्रत का अन्तिम मोल चुकाना। अन्तिम मूल्य न दिया अगर तो और मूल्य देना क्या ? करने लगे मोह प्राणो का तो फिर प्रण लेना क्या? उस प्रलयकर युद्ध मे भी महाराज चेटक तथा उनके विभिन्न सेनापतियो ने जिस अहिंसा-निष्ठा और विवेक का परिचय दिया, उससे जैन धर्म के सिद्धात, अहिंसा और जैन धर्मावलम्बियो के प्रति जो भ्रात धारणाए पनपी हुई हैं, उनका स्वत निराकरण हो जाता है। महाराज चेटक का व्यक्तित्व एक महान राजनयिक शक्ति के साथ-साथ वर्चस्वी अहिंसक योद्धा के रूप मे अभिव्यक्त होता है । उन्होने यह सिद्ध कर दिया कि ० धर्म व्यक्ति को सामाजिक और नैतिक दायित्वो से विमुख नहीं करता। ० अहिंसा कायरता नही, अपितु प्राण-विसर्जन की तैयारी मे सतत जागरूक पौरुष है। ० अहिंसाव्रती अनाक्रमण मे विश्वास रखते हैं, पर वे अनाक्रमण की क्षमता से शून्य नहीं होते । हा, वे अपनी शक्ति का मानवीय हितो के विरुद्ध प्रयोग नहीं करते । ० उनके सामने युद्ध की अनिवार्य-स्थिति उत्पन्न कर दी जाती है तो फिर वे अपने दायित्व से पीछे भी नही हटते हैं । महाराज चेटक के गणराज्य मे जैनधर्म का समुचित प्रसार हुआ था । गणराज्य के अठारह सदस्य-नप नौ मल्लवी और नो लिच्छवी भगवान महावीर के निर्वाण के समय वही पौषध किये हुए थे।
SR No.010225
Book TitleJain Dharm Jivan aur Jagat
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakshreeji
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages192
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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