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________________ 88 / जैन धर्म और दर्शन क्योंकि उसमें इलेक्ट्रॉन, प्रोटॉन, न्यूटॉन, पॉजिट्रान आदि कण पाए गए हैं। अब तो उसमें मेशॉन, क्वार्क आदि कण भी देखे गए हैं तथा अभी और भी अन्य कण देखे जाने की सभावना है। जैन दृष्टि से परमाणु में और कोई विभाग कण या भेद सभव नही है। यह उसकी अतिम इकाई है । इसे अविभागी कहा गया है, अत्यत सूक्ष्म होने से यह किसी भी इद्रिय या यत्र के द्वारा देखा भी नही जा सकता। इस बात की पुष्टि पिल्ले विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जॉन भी करते हैं, वे कहते हैं- “हम परमाणु को नही देख सकते यदि आज के सूक्ष्मदर्शी यत्रों से लाख गुणा सूक्ष्म यत्र भी बना लिए जाए तो भी उसे देख पाना असभव है।" उन्ही के शब्दों में "We can not see atoms either and never shell be able to Even if they werc a million times bigger, it would still be impossible to see them even with the most powerfull micro-scope that has been made ,, 1 परमाणु, स्कधों का अतिम रूप है। 2 यद्यपि परमाणु शाश्वत होने से नित्य है । फिर भी उसकी उत्पत्ति स्कधों के टूटने से होती है अर्थात् अनेक परमाणुओं का पिड रूप स्कध जब एक-दूसरे से विघटत होकर टूटते हैं, तब उसके अतिम रूप परमाणु की उत्पत्ति होती है । इस दृष्टि से परमाणु की उत्पत्ति भी मानी गई है। यह एक प्रदेशी होता है । 3 प्रदेश आकाश की सूक्ष्मतम इकाई है। आकाश के जितने हिस्से को एक पुद्गल परमाणु घेरता है, वह प्रदेश कहलाता है। प्रत्येक पुद्गल परमाणु में स्निग्ध, रुक्ष तथा शीत और ऊष्ण रूप चार में कोई दो स्पर्श, खट्टा, मीठा, कडवा, कसैला और तिक्त रूप पाच रस मे कोई एक रस, काला, पीला, लाल सफेद और नीला इन पाच रगों में से कोई एक रग तथा सुगंध या दुर्ग में से कोई एक गध अनिवार्य रूप से पाए जाते हैं। स्कंध दो आदि अनेक परमाणुओ के योग से बनी पुद्गल परमाणु की सयुक्त पर्याय स्कध कहलाती है । हमारी दृष्टि पथ में आने वाले समस्त पदार्थ पौद्गालिक स्कध ही है। यह दो, तीन आदि सख्यात, असख्यात और अनत प्रदेशी होता है। पुद्गल मे विशेष प्रकार की परिणमन क्षमता रहती है, जिसके बल पर यह अपना सूक्ष्म परिणमन भी कर लेता है। आकाश के एक प्रदेश में ही एक को आदि लेकर सख्यात, असख्यात और अनत पुद्गल परमाणु स्वतंत्र रूप से या स्कध रूप में भी रह सकते हैं। हम देखते भी हैं कि दूध से लबालब भरे गिलास में शक्कर आदि ठोस पदार्थ डालने पर वह भी उसमे समा जाता है अथवा बिजली के ठोस तार भी विद्युत 1 An out line for boys Girls and their parents, (Collaucery) section Chemistry Page 261 प का 77 2 3 नाणो त सू 5/11 4 द्रस 27 5 प. का 82 6 त सू 5/10 7 सर्वा सि. पृ 212
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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