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________________ अजीव तत्व पुद्गल द्रव्य यह एक अचेतन और मूर्त द्रव्य है । अन्य दर्शनों में यह भूत तथा आधुनिक विज्ञान में इसे मैटर (Matter) अथवा एनर्जी (Energy) के नाम से जाना जाता है। 'पुद्गल' शब्द बहुत अर्थपूर्ण है, यह जैन दर्शन का विशिष्ट पारभिाषिक शब्द है । यह 'पुद' और 'गल' के योग से बना है। 'पुद' का अर्थ होता है - पूर्ण होना, मिलना / जुड़ना; 'गल' का अर्थ होता है— गलना / हटना / टूटना । पुद्गल परमाणु स्कंध अवस्था में परस्पर मिलकर अलग-अलग होते रहते हैं तथा अलग-अलग होकर मिलते-जुड़ते रहते हैं। इनमें टूट-फूट होती रहती है। टूटने और जुड़ने को विज्ञान की भाषा में फ्यूजन एण्ड फिजन (Fusion and Fission) कह सकते हैं। पूरण- गलन स्वभावी होने से इसकी 'पुद्गल' यह सार्थक संज्ञा है । ' जगत् में जो कुछ भी हमारे छूने, जखने, देखने या सूंघने में आता है वह सब यह पौद्गलिक पिण्ड ही है । स्पर्श, रस, गंध और वर्ण इसके विशेष गुण हैं, 2 इसलिए इसे रूपी या मूर्तिक कहा जाता है, रूपित्व इसका लक्षण है। जगत् में ऐसा कोई भी पुद्गल नहीं है जिसमें स्पर्श, रसादि गुण न पाये जाते हों। छह द्रव्यों में यही एकमात्र रूपी द्रव्य है, 3 शेष पाच अरूपी हैं। यह मूलत: परमाणु रूप है अन्य परमाणुओं से संयुक्त हो जाने के कारण यह स्कंध रूप भी हो जाता है 1 परमाणु पुद्गल की सूक्ष्मतम इकाई परमाणु है । यह पुद्गल की स्वाभाविक अवस्था है तथा यह पुद्गल का अविभाज्य और अंतिम अंग है । इसके बाद इसका कोई और टुकड़ा नहीं किया जा सकता । जैसे किसी बिंदु का कोई ओर-छोर नहीं होता, वैसे ही परमाणु का कोई आदि और अंत बिंदु नहीं है । इसका आदि, मध्य और अंत यह स्वयं है । इसका यह अर्थ नहीं है कि वह निराकार है। अपितु परमाणु प्रमाण ही उसका आकार है। जगत् का कोई भी पदार्थ निराकार नहीं है। आज भौतिक विज्ञान जिसे परमाणु मानता है, जैन दृष्टि से वह अनन्त परमाणुओं का पुंज है। 1 त.वा. 5/1/24, पृ 211 2 स्पर्श रस गध वर्ण वतः पुद्गला; त. सू. 5/23 3 रूपिणः पुद्गला; व. सू. 5/5 4 नियमसार गाथा 36
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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