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________________ जीव और उसकी विविध अवस्थाएं / 83 उसे अधिक-से-अधिक तीन बार मुड़ना पड़ता है तथा अधिकतम चार समय में वह अपनी अगली योनि में पहुंच जाता है। शरीर निर्माण का क्रम-योनि स्थान में प्रवेश करते ही यह जीव वहां अपने शरीर-निर्माण के योग्य पुद्गलों को ग्रहण/आहार कर अपने शरीर-निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ कर देता है । इस प्रक्रिया में वह सर्वप्रथम कुछ विशिष्ट प्रकार की शक्तियां इन वर्गणाओं के बल से प्राप्त करता है, इन्हें पर्याप्ति कहते हैं। तत्पश्चात् वह क्रमशः शरीर, इंद्रिय, श्वासोच्छवास भाषा और मन का निर्माण करता है। इस कार्य में उसे ज्यादा समय नहीं लगता अपितु अंतर्मुहूर्त (कुछ मिनिट) में वह उपरोक्त छहों कार्य पूर्ण कर लेता है। इनका प्रारंभ तो वह एक साथ करता है किंतु पूर्णता क्रमशः होती है, जोकि अंतर्मुहूर्त के भीतर हो जाती है। पर्याप्तियों को पूरी करने पर वह अपने शरीर के निर्माण में समर्थ हो जाता है। जिन जीवों की पर्याप्तियां पूरी हो जाती हैं वे पर्याप्तक कहलाते हैं तथा कुछ ऐसे भी जीव हैं जो शरीर-निर्माण की क्रिया प्रारंभ तो करते हैं किन्तु वे पर्याप्ति रूप शक्तियों को पूर्ण नहीं कर पाने के कारण अपने शरीर को विकसित नहीं कर पाते, उन्हें अपर्याप्तक कहते हैं । इन पर्याप्तियों के बल से ही जीव जीवन-पर्यंत आहारादि वर्गणाओं को ग्रहण कर उनका उपयोग करने में समर्थ हो पाता है। प्रति समय आने वाले पुद्गल परमाणुओं को वह इसी के द्वारा आहार,शरीर, इंद्रिय आदि रूप परिणमाता है । जन्म जैन धर्म में दो प्रकार का जन्म माना गया है-पहला एक गति से दूसरी गति में जाने पर उत्पत्ति का जो प्रथम समय है, वह जन्म है तथा दूसरा जन्म योनि निष्क्रमण रूप/जब जीव गर्भ से निकलता है तब । योनि निष्क्रमण रूप जन्म के तीन भेद हैं--उपपाद, गर्भ और सम्मूर्छन। उपपाद (INSTANTANCOUS RISE)-उत्पन्न होते ही चलने-फिरने को उपपाद कहते हैं। देवों और नारकियों का जन्म इसी रीति से होता है इसीलिए इन्हें औपपादिक भी कहते हैं। वे उत्पन्न होने के कुछ ही क्षणों में (अंतर्मुहूर्त) अपने शरीर का निर्माण कर लेते हैं। उनकी अवस्था सोलह वर्षीय किशोर की तरह होती है। गर्भ (CTERINE BIRTH)- माता के उदर में रज और वीर्य के संयोग से जो जन्म होता है उसे गर्भ जन्म कहते हैं। यह तीन प्रकार का होता है-जरायज अंडज और पोत । जरायुज (UMBILICAL) BIRTH IN A YALK SACK)- जन्म के समय जिनके शरीर पर जाल की तरह का आवरण रहता है, उन्हें जरायुज कहते हैं। मनुष्य, गाय आदि पशु ये सब जरायुज ही हैं क्योंकि इनका जन्म इसी तरह होता है। अंडज (INCUBATORY)- अंडों से उत्पन्न होने वाले जीवों को अंडज कहते हैं। पोत (LNLMBILICAL)- BIRTH WITHOUT ANY SACK - जो योनि से निकलते ही चलने-फिरने लगते हैं वे पोत कहलाते हैं। इनके शरीर पर जाल की तरह का कोई आवरण नहीं रहता है। हिरण, कंगारू,सिंह आदि इसी तरह जन्म धारण करते हैं।
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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