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________________ 78 / जैन धर्म और दर्शन उनकी चर्चा करेंगे। जीव के भेद जीव के मुख्यत दो भेद किए गए हैं। संसारी और मुक्त। संसरण को संसार कहते हैं। जो कर्मों के कारण नाना योनियों/गतियों में भ्रमण करते हैं, वे संसारी हैं। कर्मों को नष्ट करके अपनी स्वभाविक अवस्था को प्राप्त कर स्थिर रहने वाले शरीरातीत आत्माओं को 'मुक्त' जीव कहते हैं। संसारी जीव के त्रस और स्थावर रूप दो भेद हैं जो भय खाकर अपने बचाव के लिये इधर-उधर भाग सकते, हैं उन्हें त्रस कहते हैं तथा जो अपने बचाव के लिए इधर-उधर भाग-दौड़ नहीं सकते, उन्हें 'स्थावर' कहते हैं। स्थावर जीव पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और वनस्पति के भेद से पांच प्रकार के होते हैं। जो पत्थर, मिट्टी आदि पृथ्वी को अपना शरीर बनाकर रहते हैं उन्हें “पृथ्वी कायिक" जीव कहते हैं। जल को ही अपना शरीर बनाकर रहने वाले जीव "जल कायिक" कहलाते हैं। इसी प्रकार अग्नि को अपना शरीर बनाकर रहने वाले जीव “अग्नि कायिक", वायु को अपना शरीर बनाकर रहने वाले जीव “वायु कायिक" तथा सब प्रकार की वनस्पतियों को अपना शरीर बनाकर रहने वाले जीव “वनस्पति कायिक" कहलाते हैं। __ यद्यपि इन जीवों में जीवत्व का प्रतिभास नहीं हो पाता फिर भी इनमें जीवन है। अन्यथा खान में पड़े पदार्थों में वृद्धि दिखनी असंभव थी। आधुनिक विज्ञान भी इसे स्वीकारता है। जैन दर्शन की यह विशिष्टता है कि वह पृथ्वी, जल, वायु और वनस्पति के साथ-साथ अग्नि में भी जीवत्व स्वीकार करता है, जो कि भीषण अग्नि कांड एवं विस्फोट के समय देखी जा सकती है। जीव की इस शक्ति के समक्ष मनुष्य की सारी शक्तियों को हार माननी पड़ती है। जैसे मनुष्य और पशुओं के जीवन के लिये प्राण वायु/ऑक्सीजन अनिवार्य है वैसे ही अग्नि भी ऑक्सीजन के सहारे ही जीवित रहती है, जलती है। ऑक्सीजन रूप प्राणवायु के अभाव में अग्नि बुझ जाती है। यह उसमें जीवत्व होने का सबल प्रमाण है। भले ही आज का विज्ञान इनमें जीवत्व न मानता हो परंतु जिस तरह “डॉ. जगदीशचंद्र बसु" के अनुसंधान के आधार पर वनस्पति में जीवत्व स्वीकार किया है, उसी प्रकार उसे आगे चलकर इन जीवों में भी जीवत्व स्वीकार करना पड़ेगा। ये पांचों ही स्थावर हैं। इन्हें 'एकेन्द्रिय' कहते त्रस के चार भेद हैं-दो इंद्रिय.तीन इंद्रिय चार इंद्रिय और पांच इंद्रिय वाले जीव । हमारे मन में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि इंद्रियां क्या हैं ? आत्मा संसारी दशा में जिनके द्वारा जानता है उन्हें इंद्रिय कहते हैं। इंद्रियां ही वह खिड़की हैं जिनसे 1 "We find that soil is life, and that a living soil mass of micro organic existence, the carth worm, the fuongi and the micro-organism we learn that there is a minimum of 5-millions these denizens to the cubic inch of living soil" -J. Sykes (The Sower, Winter' 1952-53 गिरनार गौरव पर उत 2 तवा1/166
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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