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________________ 36 / जैन धर्म और दर्शन का पता चलता है 1. जैन धर्म के आरंभ को जान पाना असंभव है। इस तरह यह भारत का सबसे पुराना धर्म मालूम होता है। -मेजर जे.सी. आर. फरलांग 2. जैन धर्म तब से प्रचलित हुआ जब से सृष्टि का आरंभ हुआ। इससे मुझे किसी भी प्रकार की आपत्ति नहीं है कि जैन दर्शन वेदांतादि दर्शनों से पूर्व का है। -महामहोपाध्याय राम मिश्र शास्त्री 3. जैन परंपरा के अनुसार जैन दर्शन का उद्गम ऋषभदेव से हुआ, जिन्होंने कई शताब्दियों पूर्व जन्म धारण किया था। इस प्रकार के पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध है जिसके आधार पर कहा जा सकता है कि ईसा से एक शताब्दी पूर्व भी ऐसे लोग थे जो ऋषभदेव की पूजा करते थे, जो सबसे पहले तीर्थंकर थे। इसमें कोई संदेह नहीं कि वर्द्धमान एवं पार्श्वनाथ से पूर्व भी जैन धर्म प्रचलित था। यजुर्वेद में तीन तीर्थंकरों के नामों का उल्लेख है-ऋषभदेव, अजितनाथ, अरिष्ट नेमि । भागवत पुराण इस बात का समर्थन करता है कि ऋषभदेव जैन धर्म के संस्थापक थे। __-भूतपूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन 4. पार्श्वनाथ को जैन धर्म का संस्थापक सिद्ध करने के लिए कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है । जैन परंपरा प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को जैन धर्म का संस्थापक मानने में एकमत है। इस मान्यता में ऐतिहासिक सत्य की संभावना है। -सुप्रसिद्ध जर्मन विद्वान् डॉ. हर्मन जैकोबी 5. जब जैन और ब्राह्मण दोनों ही ऋषभदेव को इस अल्पकाल में जैन धर्म का संस्थापक मानते हैं तो इस मान्यता को अविश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। -स्टीवेन्सन 6. विशेषतः प्राचीन भारत में किसी भी धर्मांतर से कुछ भी ग्रहण करके नूतन धर्म चलाने की प्रथा नहीं थी। जैन धर्म हिंदू धर्म से सर्वथा स्वतंत्र धर्म है । यह उसकी शाखा या रूपांतर नहीं है। प्रो. मेक्स मूलर 7. डॉ. जिम्मर जैन धर्म को प्रागैतिहासिक वैदिक धर्म से सर्वथा स्वतंत्र तथा प्राचीन मानते हुए लिखते हैं,"ब्राह्मण आर्यों से जैन धर्म की उत्पत्ति नहीं है, अपितु वह बहुत प्राचीन प्रागआर्य, उत्तरपूर्वी भारत की उच्च श्रेणी के सष्टि विज्ञान और मनुष्य आदि के 1. दि शार्ट स्टडीज इन साइंस ऑफ कंपरेटिव रिलिजन, पृ. 14 2. जैन इतिहास में लोकमत 3. भारतीय दर्शन भाग-1 पृ. 233 4. इंडियन एंटीक्वेरी 46/63 5. It is So Seldom that Jains and Brahmans agree I do not see now. We can refuse them credit in this instance where the do so. -Kalpsutra Introduction 6. ऋयम सौरभ पृ.29
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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