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________________ जैन इतिहास - एक झलक / 35 शिलालेखीय साक्ष्य जैन धर्म के इतिहास की दृष्टि से कलिंगाधिपति सम्राट खारवेल द्वारा लिखाया गया उदयगिरि, खंडागिरि के हाथी गुफा वाला लेख अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। नमो अरहंतानं, नमो सव्व सिद्धानं से प्रारंभ हुए उक्त लेख में जैन इतिहास की व्यापक जानकारी मिलती है । उसमें लिखा है कि महामेघवाहन खारवेल मगधराज पुष्यमित्र पर चढ़ाई कर ऋषभदेव की मूर्ति वापस लाया था । बैरिस्टर श्री काशी प्रसाद जायसवाल ने उस लेख का गंभीर अध्ययन करके लिखा है- " अब तक के उपलब्ध इस देश के लेखों में जैन इतिहास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण शिलालेख है । उससे पुराण के लेखों का समर्थन होता है । वह राजवंश के क्रम को ईसा से 450 वर्ष पूर्व तक बताता है । इसके सिवाय यह सिद्ध होता है कि भगवान महावीर के 100 वर्ष के अनंतर ही उनके द्वारा प्रवर्तित जैन धर्म, राज धर्म हो गया था और उसने उड़ीसा में अपना स्थान बना लिया था । " 1 उक्त लेख से यह प्रमाणित होता है कि भगवान महावीर के समय में भी ऋषभदेव की पूजा अर्चना होती थी । मथुरा के कंकाली टीला में महत्त्वपूर्ण जैन पुरातत्व के अतिरिक्त 110 शिलालेख मिले हैं। उसमें सबसे प्राचीन देव निर्मित स्तूप विशेष उल्लेखनीय है । अत्यंत प्राचीन होने के कारण इसे देव निर्मित स्तूप कहा जाता है। पुरातत्व वेत्ताओं के अनुसार ईसा पूर्व 800 के आसपास उसका पुनर्निर्माण हुआ । 2 कुछ विद्वान उसे आज से 3000 वर्ष प्राचीन मानते हैं । 3 उसके साथ ही वहां से ई.पू. दूसरी सदी से बारहवीं शताब्दी तक की अनेक तीर्थंकर प्रतिमाएं भी मिली हैं। इससे भी जैन धर्म की प्राचीनता सिद्ध होती है। इन्हीं सब आधारों के कारण विसेंट ए. स्मिथ ने लिखा है . " मथुरा से प्राप्त सामग्री लिखित जैन परंपरा के समर्थन में विस्तृत प्रकाश डालती है और जैन धर्म की प्राचीनता के विषय में अकाट्य प्रमाण उपस्थित करती है तथा यह बात बताती है कि प्राचीन समय में भी वह अपने इसी रूप में मौजूद था। ईस्वी सन् के प्रारंभ में भी वह अपने विशेष चिन्हों के साथ चौबीस तीर्थंकरों की मान्यता था। "4 दृढ़ विश्वासी विद्वानों के अभिमत इस प्रकार ऐतिहासिक खोजों, शिलालेखीय अन्वेषणों, पुरातात्विक साक्ष्यों एवं प्राचीन साहित्य के सत्यानुशीलन से ऋषभदेव के साथ-साथ जैन धर्म की प्राचीनता दर्पणवत् स्पष्ट हो जाती है । अब प्रायः सभी विद्वान् यह मानने लगे हैं कि जैन धर्म भारत का प्राचीनतम धर्म है और इसका प्रवर्तन ऋषभदेव ने किया था । प्रसंगानुरोध से इसी क्रम में कुछ विद्वानों महत्वपूर्ण गवेषणात्मक मंतव्यों/निष्कर्षो को उद्धृत करते हैं जिनसे जैन धर्म की प्राचीनता 1. जै. सि. भास्कर भा. 5 वि. पृ. 26-30 2, 3. देखें 'ऋषभ सौरभ' में प्रकाशित डॉ. रमेश चंद शर्मा द्वारा लिखित 'मथुरा के जैन साक्ष्य' 4. दि जैन स्तूप: मथुरा, पृ. 6
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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