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________________ जैन इतिहास-एक झलक / 37 विकास तथा रीतिरिवाजों के अध्ययन को व्यक्त करता है। 8. जैन लोग अपने धर्म के प्रचारक सिद्धों को तीर्थंकर कहते हैं। जिनमें आद्य तीर्थंकर ऋषभदेव थे। इनकी ऐतिहासिकता के विषय में संशय नहीं किया जा सकता । श्रीमद्भागवत में कई अध्याय ऋषभदेव के वर्णन में लगाए गए हैं। ये मनुवंशी महिपति नाभि और महारानी मरूदेवी के पुत्र थे । इनकी विजय वैजयंति अखिल महीमंडल पर फहराती थी। इनके सौ पुत्रों में सबसे ज्येष्ठ थे 'भरत' । जो भारत के नाम से अपनी अलौकिक आध्यात्मिकता के कारण प्रसिद्ध थे और जिनके नाम से प्रथम अधीश्वर होने के हेतु हमारा देश भारत के नाम से विख्यात हुआ। -बलदेव उपाध्याय 9. ग्रंथों तथा सामाजिक व्याख्यानों से जाना जाता है कि जैन धर्म अनादि है। यह विषय निर्विवाद है तथा मतभेद से रहित है । सुतरां । इस विषय में इतिहास के सुदृढ सबूत है। -पं. बालगंगाधर तिलक __10. यह सुविदित है कि जैन धर्म की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। भगवान महावीर तोअंतिम तीर्थंकर थे। · भगवान् महावीर से पूर्व 23 तीर्थंकर हो चुके थे। उन्हीं में भगवान ऋषभदेव प्रथम तीर्थकर थे, जिसके कारण उन्हें आदिनाथ कहा जाता है। जैन कला में उनका अंकन घोर तपश्चर्या की मुद्रा में मिलता है। ऋषभनाथ के चरित्र का उल्लेख श्रीमद्भागवत में भी विस्तार से आता है और यह सोचने को बाध्य होना पड़ता है कि उसका क्या कारण रहा होगा? भागवत में इस बात का भी उल्लेख है कि महायोगी भरत,ऋषभ के शतपत्रों में ज्येष्ठ थे और उन्हीं से यह देश भारत वर्ष कहलाया। -डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल 11. लोगों का यह भ्रमपूर्ण विश्वास है कि पार्श्वनाथ जैन धर्म के संस्थापक थे, किंतु इसका प्रचार ऋषभदेव ने किया था। इसकी पुष्टि में प्रमाणों का अभाव नहीं है। -वरदाकांत मुखोपाध्याय 12. जैन और बौद्ध धर्म की प्राचीनता के संबंध में मुकाबला करने पर जैन धर्म वास्तव में बहुत प्राचीन है । मानव समाज की उन्नति के लिए जैन धर्म में सदाचार का बड़ा मूल्य है। -फ्रेंच विद्वान् ए. गिारेनाट 13. संसार में प्रायः यह मत प्रचलित है कि भगवान् बुद्ध ने आज से 2500 वर्ष पहले अहिंसा सिद्धांत का प्रचार किया था। किसी इतिहास के ज्ञानी को इसका बिल्कुल ज्ञान नहीं कि महात्मा बुद्ध से करोड़ों वर्ष पूर्व एक नहीं अनेकों तीर्थंकरों ने अहिंसा के सिद्धांत का प्रतिपादन किया है। प्राचीन क्षेत्र और शिलालेख इस बात को प्रमाणित करते हैं कि जैन धर्म 1. Jainism docs not drive from Brahman Aryan Sources but reflects the Cosmology and an Anthropalogy of a much old pre Aryan upper class of North Eastern India. -The Philosophies of India-p. 217 2. भारतीय दर्शन, पृ. 88 सप्तम संस्करण 3. अहिंसा वाणी, जुलाई 82, पृ. 197-198 4. जैन साहित्य का इतिहास पूर्व पीठिका प्रस्तावना पृ. 8 5. जैनधर्म की प्राचीनता पृ.8 6. जैन धर्म पृ. 128
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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