SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 40
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 34 / जैन धर्म और दर्शन “सिधुजनों की भाषा प्राकृत थी। प्राकृत जन सामान्य की भाषा है । जैनों और हिदुओ मे भारी भाषिक भेद है। जैनों के समस्त प्राचीन धार्मिक ग्रंथ प्राकृत मे है। विशेषतया अर्धमगधी मे,जबकि हिन्दुओं के समस्त ग्रथ सस्कृत मे है। प्राकृत भाषा के प्रयोग से भी यह सिद्ध होता है कि जैन प्राग्वैदिक है और सिधु घाटी से उनका सबध था।"1 इस विषय मे डॉ प्रेमसागर जैन द्वारा लिखित “सिधु घाटी में ऋषभ युग" दृष्टव्य है। उन्होने अपने शोधात्मक लेख मे अनेक प्रमाणो के आधार पर यह स्थापित करते हुए कहा कि “समूची सिधु घाटी उसमे चाहे मोहनजोदडो हो या हडप्पा ऋषभदेव की थी, उनकी ही पूजा अर्चना होती थी।" ___इतिहासकारों के अनुसार वैदिक आर्यो के भारत आगमन अथवा सप्त सिधु से आगे बढने से पूर्व भारत में द्रविड नाग आदि मानव जातिया थी। उस काल की सस्कृति को द्रविड सस्कृति कहा गया है । डॉ हेरास,प्रो एस श्रीकठ शास्त्री जैसे अनेक शीर्षस्थ विद्वानो और पुरुतत्ववेत्ताओ ने उस सस्कृति को द्रविड तथा अनार्य सस्कृति का अभिन्न अग माना है। प्रो एस श्रीकठ शास्त्री ने सिधु सभ्यता का जैन धर्म के साथ सादृश्य बताते हुए लिखा है, "अपने दिगबर धर्म, योग मार्ग, वृषभ आदि विभिन्न लाछनो की पूजा आदि बातो के कारण प्राचीन सिधु सभ्यता जैन धर्म के साथ अद्भुत सादृश्य रखती है अत वह मूलत अनार्य अथवा कम से कम अवैदिक तो है ही। हडप्पा से प्राप्त योगी मूर्तिया तथा वैदिक साहित्य में उल्लिखित दस्यु, असुर, नाग और व्रात्य आदि सस्कृतिया भी उन्ही का स्मरण कराती है। ये सभी सस्कृतिया जैन सस्कृति के अगभूत सस्कृनिया थी। इसी बात पर जोर देते हुए मेजर जनरल जे सी आर फर्लाग एफ आर एस ई ने अपने ग्रथ मे लिखा है ___ "ईसा पूर्व अज्ञात समय से कुछ पश्चिमी, उत्तरी व मध्य भारतीय तुरानी जिनको द्रविड कहते है, के द्वारा शासित था। द्रविड श्रमण धर्म के अनुयायी थे। श्रमण धर्म जिसका उपदेश ऋषभदेव ने दिया था, वैदिको ने उन्हे जैनो का प्रथम तीर्थकर माना है। मनु ने द्रविडो को व्रात्य कहा है,क्योकि वे जैन धर्मानुयायी थे । श्री नीलकठ शास्त्री ने 'उडीसा मे जैन धर्म' नामक पुस्तक मे जैन धर्म को ससार का मूलधर्म बताते हुए द्रविडो को जैनो से सबद्ध किया है। वे लिखते है “जैन धर्म ससार का मूल अध्यात्म धर्म है। इस देश मे वैदिक धर्म के आने से बहुत पहले से ही यहा जैन धर्म प्रचलित था। खूब सभव है कि प्राग्वैदिको मे शायद द्रविडो मे यह धर्म था। इसी प्रकार पी सी राय चौधरी ने भी जैन धर्म को अत्यत प्राचीन धर्म माना है। उनके अनुसार मगध मे पाषाण युग के बाद कृषि युग का प्रवर्तन ऋषभ युग मे हुआ। 1 इडस सिविलाइजेशन एड हिदू कल्चर, पी आर देशमुख पृ 344 2 सिधु घाटी मे ऋषभयुग डॉ प्रेमसागर जैन णाणसायर ऋषभदेव अक । 3 देखे भारतीय इतिहास- एक दृष्टि पृ 28 4 सार्ट स्टडीज ऑफ काम्परेटिव रिलिजन पृ 243 5 उड़ीसा मे जैन धर्म पृ 3 6 जैनिज्म इन विहार पृ 47
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy