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________________ जैन इतिहास--एक झलक / 33 जैन तीर्थकर ऋषभदेव की कथा भी जैन धर्म की प्राचीनता व्यक्त करती है।"1 इसी प्रकार जैनाचार्य विद्यानंदजी द्वारा लिखित मोहनजोदड़ो, जैन परंपरा और प्रमाण नामक शोधात्मक लेख दृष्टव्य है। उन्होने अनेक प्रमाणों के आधार पर यह सिद्ध करते हुए लिखा है जैन धर्म की प्राचीनता निर्विवाद है। प्राचीनता के इस तथ्य को हम दो साधनों से मान सकते हैं—पुरातत्व/इतिहास । जैन पुरातत्व का प्रथम सिरा कहां है, यह तय कर पाना कठिन है क्योंकि मोहनजोदड़ो की खुदाई में कुछ ऐसी सामग्री मिली है जिसने जैन धर्म की प्राचीनता को कम से कम पांच हजार वर्ष आगे धकेल दिया है। इसी प्रकार हडप्पा की खुदाई से एक नग्न मानव धड़ मिला है। नग्न मुद्रा कायोत्सर्ग मुद्रा है। केंद्रीय पुरातत्व विभाग के तत्कालीन महानिदेशक टी.एन.रामचंद्रन ने उस पर गहन अध्ययन किया है। उन्होंने अपने 'हड़प्पा एंड जैनिज्म' नामक शोधपूर्ण पुस्तक में उस मूर्ति को ऋषभदेव की प्रमाणित करते हुए लिखा है हड़प्पा की कायोत्सर्ग मुद्रा में उत्कीर्णित मूर्ति पूर्ण रूप से जैन मूर्ति है, उनके मुख पर जैन धर्म का साम्य भाव दूर से झलकता है।" डॉ. काशीप्रसाद जायसवाल ने भी इसे तीर्थंकर ऋषभ की मूर्ति माना है। उनके अनुसार ‘पटना के पास लोहानीपुर से प्राप्त तीर्थंकर महावीर की मूर्ति भारत की सबसे प्राचीन मूर्ति है । हड़प्पा की नग्न मूर्ति और इस जैन मूर्ति में समानता है । इनकी विशेषता है योग मुद्रा । __ बाबू कामता प्रसाद जैन ने भी अपनी पुस्तक 'महावीर और अन्य तीर्थकर' में लिखा है कि “हड़प्पा से प्राप्त एक प्लेट नं. 10 पर केवल मानव मूर्ति का धड़ उत्कीर्णित है। यह भी नग्न है और कायोत्सर्ग मद्रा में है। इसका हबह साम्य बांकीपुर की जैन मूर्ति में मिलता है। यह मौर्य कालीन है।"5 हड़प्पा की संस्कृति को विद्वानो ने ईसा पूर्व 2000 से 3000 का माना है। इससे स्पष्ट होता है कि आज से चार-पांच हजार वर्ष पूर्व भी तीर्थकरों का अस्तित्व था और उनकी पूजा अर्चना होती थी। इन सब आधारों से अनेक विद्वानों ने यह स्वीकार किया है कि सिंधु घाटी की सभ्यता जैन संस्कृति से सबद्ध थी। श्री पी आर. देशमुख ने अपनी पुस्तक इंडस सिविलाइजेशन ऋग्वेद एंड हिदू कल्चर' में लिखा है "जैनों के पहले तीर्थकर सिधु सभ्यता मे ही थे। सिधु जनों के देव नग्न होते थे। जैन लोगों ने उस सभ्यता/संस्कृति को बनाए रखा और नग्न तीर्थकरों की पूजा की।" उन्होंने सिधु घाटी की भाषिक संरचना का भी उल्लेख करते हुए लिखा है 1 भारतीय इतिहास और सस्कृति पृ 199-200 2 मोहनजोदडो जैन परपरा और प्रमाण पृ 12 3 Thc Harappan Statuette being exactly in the above specified Pore We may not wrong in identifying The God represented as a Trithankara or a Jaina ascetic of accredited fame and penance ų 4 4 द इडस वैली सिविलाइजेशन एड ऋषभदेव, वी जी नैयर, 11 5 महावीर और अन्य तीर्थकर, पृ 23
SR No.010222
Book TitleJain Dharm aur Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPramansagar
PublisherShiksha Bharti
Publication Year
Total Pages300
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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