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________________ ७८ जन धम मनुष्य जन्म लेकर बाल, युवा और वृद्ध होता है, वैसे ही वनस्पनि भी । उमम मनुप्यो के ही समान शयन, जागरण, भय, लज्जा आदि विकार पाये जाते है । जैसे मनुष्य पथ्य आहार से पुष्ट, और अपथ्य पाहार से दुर्बल होता है, उमी प्रकार वनस्पति भी होती है । मनुष्य की तरह वनस्पति पर भी विप का प्रभाव होता है । अन्य प्राणियों की तरह वनस्पति भी नियत आयु के बल पर जीती है। प्रसिद्ध भारतीय वैज्ञानिक सर जगदीशचन्द्र बोस ने वनस्पति का सजीव होना सिद्ध किया है। खेद है कि यह कार्य प्रागे नहीं बढ़ा, किन्तु एक समय आएगा जव विज्ञान, पृथ्वीकाय, आदि की सजीवता पर भी अपनी स्वीकृति की मोहर लगाएगा । इस क्षेत्र में जैन दर्शन अब भी विज्ञान से आगे है। द्वीन्द्रिय जीव:--' जिन्हें स्पर्श और रसेन्द्रिय प्राप्त है-ऐसे द्वीन्द्रिय जीव, गख, सीप, कृमि आदि हैं। त्रीन्द्रियजीव :--' इन्हें एक घ्राणेन्द्रिय अधिक प्राप्त होती है । खटमल, चिऊँटी आदि इसी कोटि मे है। चतुरिन्द्रियजीव :--3 इन्हें नेत्र भी प्राप्त है । मच्छर, मक्खी आदि चार इन्द्रिय वाले है। पंचेन्द्रिय जीव --मनुष्य, पशु, पक्षी, देव, नारकी आदि पचेन्द्रिय है। इनको पूर्वोक्त चार इन्द्रियो के अतिरिक्त श्रवण-इन्द्रिय भी प्राप्त है। यह कई प्रकार के है-जलचर, स्थलचर, नभचर, उर परिसर्प, भुजफरिसर्प आदि। कोई गर्भज होते है, और कोई समूर्छिम । कोई समनस्क और कोई अमनस्क होते है । पाँचो एकेन्द्रिय जीवो मे वनस्पतिकाय के सिवाय शेष के सात-सात लाख अवान्तर भेद हैं। वनस्पतिकाय के चौवीस लाख भेद है। द्वीन्द्रिय, श्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जीवो के दो-दो लाख प्रकार है । सव मिलाकर ८४ लाख जीव योनिया है५ इन सब जीवो का विशद वर्णन, आप विभिन्न जैनागमो में पायेगे। १. प्रज्ञापना प्रथम पद २ प्रज्ञापना प्रथम पद ३. प्रज्ञापना प्रथम पद ४ प्रज्ञापना प्रथम पद । ५. आधुनिक विज्ञान, धर्म द्रव्य को Ethor or Principle of motion कहते है।
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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