SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म विषय अथवा कारण के आधार पर अन्यान्य ज्ञानो के अनेक भेद-प्रभेद होते है, किन्तु केवलजान मे कोई भेद संभव नहीं, क्योकि यह परिपूर्ण ज्ञान है, और पूर्णता मे किसी प्रकार की भिन्नता नही होती । उक्त पाँच जानो मे से मतिजान, श्रुतजान और अवविज्ञान, मिथ्यात्व के ससर्ग से मिथ्याज्ञान भी हो सकते है । किन्तु मन पर्यव, और केवलजान मिथ्यादृष्टि को प्राप्त नही होते । अतएव वे सम्यग्जान ही होते है। विश्व का विश्लेषण द्रव्य व्यवस्था १ द्रव्य मीमांसा का उद्देश्य -द्रव्य अथवा तत्त्व का बोध जीवन की प्रक्रिया का मूलभूत अग है । श्रमण सस्कृति के तत्त्व निरूपण का उद्देश्य जिज्ञासापूर्ति नही, चारित्र-लाभ है । इस जानधारा का उपयोग, साधक आत्मविशुद्धि के लिए और प्रतिवन्धक तत्त्वो के उच्छेद के लिए करता है। जैन धर्म वैज्ञानिक धर्म है। उसका साहित्य निगूढ वैज्ञानिक मीमासा प्रस्तुत करता है । द्रव्य व्यवस्था जैन विज्ञान का विलक्षण आविष्कार है। आधुनिक वैज्ञानिक अनुसंधान जैन विज्ञान के अकाट्य तथ्यो पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाता जा रहा है । जैन तत्वज्ञान और आधुनिक विज्ञान की समताएँ अनेक वार विद्वानो का विस्मय का विषय बन जाती है । भौतिक साधनो के सहारे तत्त्वअन्वेषण करने वाले वैज्ञानिको से आत्मज्ञानी महात्मा कहीं आगे भी वंढ़ गये, यही तो आत्म-साक्षात्कार करने वाले दिघ्य द्रष्टायो का चमत्कार है। किन्तु जहाँ दोनो के तत्त्वनिरूपण मे बहुत कुछ साम्य है, वही से दोनो के उद्देश्य में बहुत वडा वैपम्य भी है । जैन धर्म के अनुसार तत्त्वज्ञान मुक्तिलाभ का एक अनिवार्य साधन है, जब कि विज्ञान का लक्ष्य विज्ञान ही है । प्रत्येक विचार स्याद्वाद से परिमार्जित हो, और प्रत्येक प्राचार अहिसा से परिपूर्त हो तो साधक के मुक्तिलाम मे कुछ विलम्ब नही रहता, इसी कारण चारित्र से भी पूर्व तवत्नान को स्थान दिया गया है। २. द्रव्य क्या है ? १ 'द्रव्य', शब्द 'द्रव' धातु से निष्पन्न है। जिसका अर्थ १ गुणपर्यायवद् द्रव्यम्, तत्त्वार्थ सूत्र० अ० ५, सू ३८, उत्तराध्ययन, अ० २८, गा० ६॥
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy