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________________ अतीत की झलक ४५ सकलात्मक हिसा त्यागने पर अधिक जोर दिया है । हिंसा जीवन मे होती है, पर हिला के कम से कम होने पर अहिसा की ओर उन्मुख रहना ही भ० महावीर ने श्रावक का आदर्ग उद्घोपित किया है । यदि मनुष्य इस प्रकार जीवन व्यतीत करता है तो उसका जीवन उज्ज्वल होता है, और कल्याण के निकट पहुचता है। भगवान महावीर ने भारत को अशुभ से शुभ की ओर व शुभ से शुद्ध की ओर प्रवृत्त होने का सदेश दिया है। उनका सदेव वाणी की अपेक्षा कर्म के रूप में अधिक था। कर्म के आधार पर दिया यह सन्देश समस्त चराचर के कल्याण-निमित्त था। वे अहिंसा से मंत्री, सत्य से विश्वास और अचौर्य से निष्कपट और ब्रह्मचर्य से तेज ग्रहण कर अपरिग्रह से मनुष्य को परम पुरुषार्थी बनाना चाहते थे। भारतीय इतिहास के उन चार महापुरुषो मे से, जिन्होने आज की, सभ्यता का निर्माण किया और आर्य सस्कृति की प्रतिष्ठा की उनमे, राम कृष्ण, बुद्ध और महावीर है। ____ उन्होने भोग पर त्याग को विजेता बनाया। मनुष्य कार्य करे, परन्तु उसका उद्देश्य पवित्र हो। सम्यक् ज्ञान के लिए दृष्टि शुद्ध रखकर देखे। संसार का अध्ययन करे। वृत्तियो को शुद्ध करे। जब तक मनुष्य अपना विवेक जगा समार पथ पर चलता रहेगा, तब तक उसके समस्त कर्म सुभाव वनते जाएगे। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति अहिसामय, पुरुपार्थमय और साहित्य जीवनमय, अथवा जीवन मुक्तिमय बन गया। लोक भाषा का प्रश्रय लोक जीवन पर इस अमृत वाणी का अपार प्रभाव पड़ा । समाज की उच्छृ खल अव्यवस्था का अन्त पाया और मनुष्य ने मनुष्य बनकर रहने का सकल्प किया । उसने अच्छा बनने का नत लिया। साहित्य के विविध क्षेत्रो मे मनुष्य-मन की सकाम प्रवृत्तियो को अपना बीज बोने का अवसर न मिला। इससे आध्यात्मिक साहित्य की उन्नति हुई, और जीवन सहज स्वतत्र हुअा और बुद्धि निरामय हुई । भगवान् लोकभापा मे ही लोक-साहित्य-निर्माण देखना चाहते थे। इसी हेतु उन्होने लोकभाषा का आश्रय लिया। वे चाहते थे कि साहित्य कलात्मक और सुन्दर बनाने वाला हो।
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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