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________________ अतीत को तलक भगवान् पाश्र्वनाथ तेईसवे तीर्थकर भगवान् पार्श्वनाथ का जन्म २८०० वर्ष पहले हुआ था। वे राजपुत्र थे। महाराजा अश्वसेन इनके पिता थे । माता का नाम वामा देवी था। भारत के विख्यात. विद्याधाम काशी में इनका जन्म हुआ था। गगातट पर एक तापस अग्निताप सहन कर रहा था। पार्श्वनाथ ने उसे बतलाया कि तेरी धूनी के लक्कड़ में नाग-नागिन का एक जोडा जल रहा है। राजकुमार की यह बात सुनकर तपस्वी क्रुद्ध और क्षुब्ध हो गया । तापस ने अग्नि मे से वह लक्कड़ निकाल कर फाड़ा तो राजकुमार की बात सच निकली । दर्शकगण तापस के अज्ञान का विचार कर म्लानमुख हो गये । तापस लज्जित था, क्रुद्ध था, परन्तु विवश था। मृत्यु के पश्चात् तापस देवयोनि में जन्मा । उधर पाश्वनाथ गृहत्याग कर साधु बन चुके थे। उस देव ने अपने अपमान का प्रतिशोध करने के लिए भगवान को वहुत कप्ट पहुचाये। उसने एक बार उन्हे जलवृष्टि में डबा देने की कुचेप्टा की, किन्तु उस नाग-नागिन के युगल ने, जो मर कर धरणेन्द्र देव और पद्मावती के रूप मे जन्मा था, आकर भगवान् का उपसर्ग निवारण किया। भगवान् पार्श्वनाथ भारत के प्रसिद्धतम नागवंग में उत्पन्न हुए थे । आज के इतिहासज्ञ विद्वानो ने आपको ऐतिहासिकता इस प्रकार स्वीकार की है :-- "श्री पार्श्वनाथ भगवान का धर्म सर्वथा व्यवहार्य था। हिंसा, असत्य, स्तेय और परिग्रह का त्याग करना, यह चातुर्याम सवरवाद उनका धर्म था। इसका उन्होने भारत भर में प्रचार किया । इतने प्राचीन काल मे अहिंसा को इतना सुव्यवस्थित रूप देने का यह सर्वप्रथम उदाहरण है।" । ____ "श्री पार्श्वनाथ ने सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह-इन तीनो नियमो के साथ अहिंसा का मेल विठाया। पहले अरण्य में रहने वाले ऋषि-मुनियो के आचरण मे जो अहिंसा थी, उसे व्यवहार में स्थान न था। तीन नियमो के सहयोग से अहिंसा सामाजिक वनी, व्यावहारिक बनी।" इन उद्धरणो से विदित होगा कि अहिंसा के सर्वप्रथम (इतिहास सिद्ध) व्यावहारिक प्रयोग-द्रष्टा पार्श्वनाथ ही थे।
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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