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________________ जैन धर्म की विशेषताएँ २३७ स्थावरजीव-जैन धर्म वनस्पति पृथ्वी, जल, वाय और तेज मे चैतन्य गक्ति स्वीकार करके उन्हें स्थावर जीव मानता है। श्री जगदीशचन्द्र वसु ने अपने वैज्ञानिक परीक्षणो हाग बनम्पति की मजीवता प्रमाणित कर दी है। उसके पश्चात् विज्ञान पथ्वी की जीवत्वशक्ति को स्वीकार करने की ओर अग्रसर हो रहा है। विव्यात भगर्भ वैज्ञानिक श्री फ्रासिम ने अपनी दशवीय भूगर्भयात्रा के मम्मरण लिखते हुए Ten years under earth नामक पुस्तक में लिया है कि.--- "मैंने अपनी इन विविन यात्रामो के दौगन मे पृथ्वी के ऐसे-ऐसे स्वरूप दे है जो आधनिक पदार्थविज्ञान में विरोधी थे। वे स्वरूप वर्तमान वैज्ञानिक मृनिश्चिन नियमो द्वाग समझाये नहीं जा सकते।" इसके पश्चात् वे अपने हृदय के भाव को अभिव्यक्त करते हुए कहते है--- "नो प्राचीन विद्वानो ने पृथ्वी में जीवत्वशक्ति की जो कल्पना की थी, व्या वह सत्य है ?" श्री-फ्रामिन्न भूगभ मववो अन्वेपण कर रहे हैं। एक दिन वैज्ञानिक जगत् पृथ्वी की नजीवता स्वीकृत कर लेगा, ऐमी पागा की जा सकती है। जैन धर्म के अनुसार प्रत्येक प्रात्मा मे अनन्त ज्ञानशक्ति विद्यमान है, परन्तु जब तक वह कर्म द्वारा ग्राच्छादित है, तब तक अपने अमली स्वरूप में प्रकट नहा हो पाती। जब कोई सबल प्रात्मा प्रावरणो को नि शेष कर देती है, तो भूत पार भविष्य वर्तमान की भॉति माफ दिखाई देने लगते हैं । सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक डा० जे० बी० राइन ने अन्वेषण करके अनेक अाश्चर्यजनक तथ्य घोपित किये है। उन तथ्यो को भौतिकवाद के पक्षगानी वैज्ञानिक स्वीकार करने मे हिचक रहे है, मगर उन्हे अमान्य भी नही कर सकते है। एक दिन वे तथ्य अन्तिम रूप में स्वीकार किये जायेगे, और उस दिन विज्ञान प्रात्मा तथा सम्पूर्ण ज्ञान (केवल जान) की जैन मान्यता पर अपनी स्वीकृति की मोहर लगाएगा। लोकोत्तर ज्ञान--ध्यान और योग जैन-साधना के प्रधान अग है । जैन धर्म की मान्यता के अनुसार ध्यान और योग के द्वारा विस्मयजनक आध्यात्मिक गक्तियो की अभिव्यक्ति की जा सकती है। आधुनिक विज्ञान भी इस मान्यता को स्वीकार करने के लिए अग्रसर हुअा है। इस सबध मे प्रसिद्ध विद्वान् डा० ग्रेवाल्टर की The leaving brain नामक पुस्तक पठनीय है। वे कहते है -
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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