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________________ जैन धर्म की परम्परा २२९ पाइथेगोरियन नांगो की कमी नहीं। उनके सिद्वान्त, उनकी मान्यताए जैन धर्म में ग्रनप्राणिन है। दिगम्बर पट्टावलियो मे नो पिहिताश्रव (पाइथेगोरस) नाम के मत का उल्लेख मिलता है। भगवान् महावीर से २० वर्ष पूर्व पाइथेगोरस भारत मे पाये थे, और उन्होने भगवान् पार्श्वनाथ के साधुनो मे जैन-दीक्षा ग्रहण कर ग्रीस मे जैन धर्म का प्रचार किया था। तत्व और मिद्धान्त की दष्टि से जैन धर्म ग्राज विश्व-व्यापी बना जा रहा है क्योकि विश्व मे सामाजिक, मैद्धान्तिक, और राजनैतिक नेता-गण अहिसा को ही सर्वश्रेष्ठ सिद्धान्त के रूप में रवीकार करते है। आज युद्ध के विरुद्ध शान्तिवादियों का मोर्चा भगवान् महावीर के उस कथन के अनमार बन रहा है जिसमे उन्होने कहा था कि --- "मा हणो, मा हणो" (मत हिंसा करो, मत हिंसा करो) का उपदेश देने की भी प्रेरणा दी थी। जनवमं एक विचारधाग हे जो मामाजिक नियमो व व्यावहारिक गम्बन्धो को परिवर्तन करना धम के लिये अनावश्यक गमझता है। जैन धर्म न तो किसी की भापा परिवर्तित करना चाहता है, न किमी की विवाह गद्धति में हस्तक्षेप करना चाहता है, और न ही राज्य तथा भोतिक समृद्धि पर उसने कभी विश्वाम किया है, वह नो मानवता के जागरण, विकारों के नियत्रण और आत्मदर्शन का सदेश विश्व में फैलाना चाहता है। ये सभी सम्राट' स्वय शुद्धाचरगी थे, इनके शासनकाल मे निरपराध प्राणियो की हत्या बन्द रही है, लोग मुखी और समृद्धिशालो थे। सभी अपने-अपने नियत कार्यों को किया करते थे, एक को दूसरे के प्रति ईर्ष्या या ढेप नहीं था, ऊँचनीच के भेदो को पुण्य-पाप का फल समझते थे, इसी लिए पाप कर्म से हट कर, गुण्य कर्म करने का यथागक्ति प्रयत्न करते थे। शासक कभी किसी के धर्म या सामाजिक नियम में किसी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करते थे। प्रजा की रक्षा-व्यवस्था के लिए भूमि और चुङ्गी कर के अतिरिक्त कोई कर नहीं लेते थे, वह या "सुराज्य" जिसे लोग चाहते है। दक्षिण भारत मे गगवशीय आदि जैन धर्मानुयायी राजानो ने मैकडो वर्ष तक निष्कटक राज्य किया है। चामुण्डराय आदि वीरो ने अपनी शक्ति का परिचय दिया है। आज भी मुडविक्री मे राजवश के उत्तराधिकारी विद्यमान है । १. प्रसिद्ध जैन सम्राटो की तालिका पृ० २३० पर देखिए।
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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