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________________ ' १४. संवाहन १५. दन्तधावन १६. सप्रश्न १७. देहप्रलोकन १८. अष्टापद १६. नालिक २०. छत्रवारण २१. चिकित्सा २२. उपानह २३. ज्योतिरारभ २४. शय्यातरपिण्ड २७ गात्रमर्दन २८. गृहिवैयावृत्य २५. आसन्दी २६. गृहान्तरनिषद्या ३० तप्तानिवृत्ति - ३१. प्रातुरस्मरण ३२. मूली खाना ३३. अदरख खाना २६. जात्याजीविका Bagal - - - -- चारित्र और नीतिशास्त्र शरीर को श्रानन्द देने वाला तैलमर्दन करना ।, मजन आदि का प्रयोग करके दातो को चमकदार बनाना । गृहस्थो से उनकी निजी पारिवारिक बाते पूछना | का मुह देखना । आदि खेलना । चौपड़ ग्रादि खेलना । सिर पर छतरी आदि प्रोढना । रोग न होने पर भी वलवृद्धि के लिए औषध सेवन करना । चिकित्सा करवाना | २० जूते, खडाऊ, मौजे यादि पहनना । दीपक जलाना, चूल्हा जलाना अथवा किसी भी प्रकार से अग्नि का व्यवहार करना । जिसकी आज्ञा लेकर मकान में ठहरा हो, उसके घर से आहार लेना । पलग, खाट आदि का उपयोग करना । रोग, तपश्चर्या जनित दुर्बलता एव वृद्धावस्था यादि विशेष कारण के बिना गृहस्थ के घर मे बैठना । पीठी आदि लगाना । गृहस्थ से पैर दबवाने प्रादि की सेवा लेना या उसकी सेवा करना । सजातीय या सगोत्री वनकर आहार आदि प्राप्त करना । पूरी तरह उचित न होने पर भी, जल आदि ले लेना | कष्ट ग्राने पर अपने कुटुम्बी जनो का स्मरण । करना, पत्नी-पुत्र आदि को याद करना । गडेरिया लेना । ३४. इक्षुखड ३५. कन्दो का उपभोग करना ।
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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